किसान
किसान
है अन्न का वह दाता
खुद भूखा रह लेता
थोड़ा कम में खुश हो लेता
पर फिर भी हमें बाँटकर तब खुद है खाता
उसके बैल भी दम भर लेते हैं
स्वयं को भू स्वामी के हवाले कर देते हैं
कड़ी दुपहरी में वो तपता है
लू के थपेड़ों से भी गुजरता है
उसको ना सर्दी ख़ासी सताती है
कैसे हल्के से कम्बल में रातें उसे जगाती है
बच्चों को चैन से सोता देख
उसके चेहरे पर ख़ुशी आ जाती है
कभी ओलावृष्टि कभी मूसलाधार बारिश से
उसके सपनों की भी मिट्टी बह जाती है
जिस पौध को बालक जैसा बड़ा किया
जब वही खेतों में खड़ी फसल
बेजान पड़ी नजर आती है
फिर क़र्ज़ों की किताब याद आती है
वो फसल भी गई जो दाना पानी दिलाती है
इनमें से कुछ का दिल तो मजबूत होता है
जो इस त्रासदी को सह लेता है
पर कोई इतना मजबूर होता है
अपनी देह की मिट्टी से संसार खो देता है
क्या इनको जीने का हक़ नहीं
जो देश की ख़ातिर अपने प्राण गँवाता है
सरकार को नही आती याद
जिसके उगाये अन्न से देश गर्व से अग्र श्रेणी हो जाता है
बना तो दिये हैं किसान योजना
फिर उसके पास तक कैसे पहुँच नहीं पाता है
नारा तो दे दिया “जय जवान जय किसान”
करो इनका भी दिल से सम्मान
आओ एकजुट हो इनको अधिकार दिलाते हैं
इनकी आवाज़ खुद बन इतनी बुलंद कराते हैं
किसानों के लिए बनी योजनाओं को
उनसे अवगत करवाते हैं
कोई भी ना टूटे ऐसे हालातों से
ऐसा कुछ जीवन में पुण्य कमाते हैं।