Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Dr Ambili T

Abstract

4  

Dr Ambili T

Abstract

किसान- मानवता की प्रतिमूर्ति

किसान- मानवता की प्रतिमूर्ति

2 mins
313


नतमस्तक हो जाएँ तेरे सामने,

अन्नदाता तू पालनकर्ता,

तेरा जीवन ही है आदर्श,

देता है अच्छी सीख हमें तू।

   

 झुलसती गर्मी हो या ठिठुरती सर्दी-

 तन तोड मेहनत में तल्लीन तू।

 घनघोर वर्षा में भी शरीर तेरा,

 तर जाता है पसीने से ।


 स्वयं भूखा रहकर हमेशा,

औरों को खिलाने में व्यस्त।

औरों के चेहरे की हँसी से

पुलकित होता है मन तेरा।

  

 कृत्रिम सुगन्ध का लेपन नहीं,

कीचड का लेपन है शरीर पर।

मिट्टी का गन्ध तेरे लिए पेर्फ्यूम,

जो प्रदान करता है ऊर्जा तुझे।

  

अंकित है तेरा बिंब हमारे उर में,

 फटी पुरानी धोती तन पर,

पगडी सिर पर है प्रकृति की,

अति सार्थक तेरा ‘हलधर’ नाम।

      

 सपने नये छाते हैं तेरे अंतकरण में,

 खेत की मनमोहक हरियाली देखकर,

  हवा, पानी, मिट्टी है तेरे सहचर-

  शोषित वंचित हमारा साथी।

    

 तू करता है संवाद प्रकृति से,

विश्वास है प्रकृति धोखा नहीं देती।

पारिस्थितिक सजगता केवल बोलबाला नहीं,

कूट कूटकर भरी है तुझमें।


कृषि संस्कृति तो श्रेष्ठ संस्कृति है।

पुण्य संस्कृति है पुरातन,

सौंपी जाती है यह संस्कृति,

पीढी- दर- पीढि पवित्रता से।

   

 तू जानता है जीने की कला,

 प्रकृति से तालमेल होकर ।

 प्रकृति तेरे लिए माँ है,

 जिसने तुझे दिया है वरदान।

         

  तू करता है काम, मिलकर साथियों से,

  मज़े से गाता है तू उनके साथ।

  फसल काटने में तल्लीन रहकर,

  संजोता है अनेक सपने जीवन के।

    

 प्रसन्न है तू श्रम- फल देखकर -

 झट भूल जाता है अपनी गरीबी।

 जैसे बच्चे का चेहरा देखते ही-

 भूल जाती है माँ प्रसव पीडा।

    

डाइनिंगहॉल, ए.सी, कूलर नहीं,

खेतों की मीढ और खुली हवा ही है।

बहुमंजिला बंगला नहीं सोने को,

फूस के छप्पर वाली झोंपडी ही काफी।


 कृषि संस्कृति गुज़र रही है पीढी दर पीढी-

आज की नवीन पद्धतियाँ खेती की-

परिस्थिति तंत्र के लिए विनाशकारी,

चुनौतिपूर्ण हैं ये तेरे लिए भी।

 

 बदल रहा है जीवन का चित्र तेरा,

खेती व्यवस्था में आयी नवीनता।

बढती है परिवर्तन की विह्वलता,

 शुरुआत है कीटनाशकों के प्रयोग की।

   

 गोबर, राख, सडे पत्ते को हराकर,

आ गये हैं पोटाश्यम, फोस्फेट, यूरिया ।

जैव कीटनाशकों की मृत्यु हो गयी है,

 रासायनिक कीटनाशकों का बोलबाला है।

     

 बुरा असर डालता है यह स्वास्थ्य पर,

ले जाता है, अकाल मृत्यु की ओर,

देशी बीज का बहिष्कार हुआ है,

 घुस गया है, आयातीत संकर बीज ।

    

 शोषित है तू साहूकार- व्यापिरियों द्वारा,

 हाशिएकृत बना दिया है तुझे।

ज़मीन की तैयारी से फसल काटने तक का-

असल हकदार तो तू ही है।

    

अब कृषि संस्कृति पर पडा है -

प्रभाव बाज़ारी संस्कृति का।

यह विकास तो खेती का नहीं,

 लाभ जुटानेवालों का विकास है।


चुप्पी साधने में विवश है तू,

अंधेरा छा जाता है आँखों में,

ढूँढता है मार्ग आत्माहूति का,

छोडता है परिवारवालों को अनाथ।

    

 हाशिएकृत तेरी स्थिति में-

 बदलाव का आभास होने लगा है।

 मुख्यधारा की ओर प्रस्थान होगा तेरा,

 शासक और समाज पर निर्भर है यह।

 

 हे दुनिया का सेवक सर्वश्रेष्ठ!

सहयोगी बनें हम अपने अन्नदाता के।

हे लघुमानव, नारे लगाएँगे तेरे लिए,

मानवीयता की मूर्ति, तेरे के लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract