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Vikash Kumar

Tragedy

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Vikash Kumar

Tragedy

सियासती जनता

सियासती जनता

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प्रलय की कैसी घड़ी है,

मौत हर ओर खड़ी है,

जिंदगी जीना कठिन था,

मौत आसां हो गई है,


हमने फूलों को है कुचला,

कफन पर काँटों को छिड़का,

सियासती सब हो गये हैं,

द्वेश में सब खो गये हैं,


कौन किसको मारता है,

किसकी गर्दन काटता है,

देश में नुकसान भारी,

कौन किस पर हुआ हावी,


मजहब जाति के रंग गहरे,

अशफाक, भगत को हैं सब भूले,

मेरी चिता भी अब जलाओ,

मुझको मुक्ति तुम दिलाओ,


देश बलिदान माँग रहा है,

सरहदों पर ताक रहा है,

क्यों वतन को बाँटते हो,

जहर दूध में उबालते हो,


मह कहो यह भारतीयता है,

देश की यही दास्तां है।


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