STORYMIRROR

Sulakshana Mishra

Abstract

4  

Sulakshana Mishra

Abstract

सिंदूरी शाम

सिंदूरी शाम

1 min
274

जाने कब ये मिलावट 

मेरी शाम में हो गयी।

कभी होती थी बड़ी खास

मेरी हर शाम की बात।

देखते ही देखते

अब वो बात आम हो गयी।


गुजरती थी शाम कभी

चाय की चुस्कियों के साथ।

चाय की प्याली तो अब भी है

पर न जाने कब

चाय बेस्वाद हो गयी।


जाने कब ये मिलावट 

मेरी शाम में हो गयी।

वो शाम में बैठ कर

घरौंदों को लौटते पंछियों

को जी भर के निहारना 

तो गुज़रे कल की बात हो गयी।


अब तो खुद ही 

घर लौटने की आपाधापी में

शाम में वो बात न रही।

बड़ी हसरत है कि

एक बार फिर वो शाम आ जाए।

एक बार फिर ढले सूरज


और एक बार फ़िर

मेरी शाम सिंदूरी हो जाए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract