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Dhirendra Panchal

Romance

3  

Dhirendra Panchal

Romance

श्रिंगार रस

श्रिंगार रस

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उसकी यादों के तिनके से दरिया पार हो जाऊं ,

वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊं ।


लाल कपोलों पे उसके वो तिल है काली काली ,

फूलों की पंखुड़ियों सी उसके अधरों की लाली।

वो जो बादल बन गरजे मैं सावन बन इतराऊं,

लबों को छू कर प्यास बुझे बस यूं ही बरस न पाऊं।

वो हँस कर अपना दर्द छुपाये मैं कैसे सब कह जाऊं।

वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊं ।


क़ातिल लगती तीखी आंखों से मीठा आघात करे ,

जान भी तब बेजान हो जाये जब वो मुझसे बात करे ।

उसकी भींगी जुल्फों से जब छेड़खानी वो वात करे ,

लगता कि पांचाल स्वयं ही अपने ऊपर घात करे ।

वो अधरों से संघात करे मैं महल पुराना ढह जाऊं ।

वो मंद मंद मुस्काये जब मैं कश्ती संग बह जाऊं ।


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