श्रीमती
श्रीमती


एक दिन मामला इस तरह बिगड़ गया
सुश्री को श्रीमती लिखना भारी पड़ गया ।
नाम के आगे श्री माती लिखा देख
वो घबरा गई
अपनी बातों से मुझे भी
चकरा गई
बोली श्रीमती का मतलब समझते हैं आप
या बस कलम मिल गया तो कुछ भी लिखते हैं आप।
अरे, श्रीमती बनने के बाद
सबको बनाना खिलाना पड़ता है
तुमको क्या पता
कैसे घर चलाना पड़ता है
शादी के चार साल बाद ही
सफेद हो जाते हैं बाल
और फिर
किसी की भी नहीं गलती है दाल ।
घर कांच सा चमकाना पड़ता है
और कभी-कभी दिखावटी
प्रेम भी छलकाना पड़ता है
बहुत सारी बातों को हंसकर टालना
बच्चों के साथ-साथ बाप को भी संभालना
सबके सामने घूंघट निकालना
पति को 'ए जी' कह कर पुकारना ।
रोज खाना, बर्तन, झाडू करना
कभी-कभी सासू जी से लड़ना
किससे चल रही चैटिंग
करनी पड़ती है निगरानी
उखाड़नी पड़ती है गड़े मुर्दों की कहानी ।
मुझसे बुरा कोई नहीं होगा
कह कर भय दिखाना पड़ता है
पानी सर से ऊपर जाए
तो सबक सिखाना पड़ता है
सात जन्मों की करनी पड़ती है भविष्यवाणी
कुछ दिनों तक पहननी पड़ती है साड़ी ।
बस पोछना पड़ता है फर्श
नहीं हो पाता कभी पर्स का स्पर्श
बंद करने पड़ते हैं अपने शब्दों के प्रहार
जब भी लेना होता है कोई उपहार
समझनी पड़ती है एक दूसरे की भावना
तभी जीवन में दिखती है संभावना ।
आप तो बस मेरे नाम के आगे कलम चला गए
बिना इतना कुछ किये ही श्रीमती बना गए
आपने तो कर दिया मेरा सत्यानाश
क्या आपको इस बात का है 'एहसास'
इतना सब सुनकर मैं
बोलते - बोलते अटक कर रह गया
मुंह ही ना खोला बस थूक गटक कर रह गया
सोचा मेरी ही मारी गई थी मती
जो सुश्री को लिख दिया श्रीमती।।