कम पैसे, बची इज्ज़त
कम पैसे, बची इज्ज़त
पाँच रुपये लेकर चिंटू भैया
पहुँचे खाने कुलचे छोले
इक पत्ता हमको भी देना
मुँह को बिचकाकर बोले
ये क्या देते हो प्यारे बिटवा
दस का मिलता इक पत्ता
पाँच का कुछो नहीं आवत
रोटी, रुमाल न कुछ लत्ता
अब तो ये बड़ी कठिनाई
बिलकुल ऐसा सोचा न था
ये तो इज्ज़त की बात हुई
वापस लौट के जाना न था
फिर एक नई तरकीब कौंधी
क्यूँ न पत्ता मांगें हम आधा
थोड़ा ही सही कुछ तो मिलेगा
इज्ज़त भी कम न होगी ज्यादा।