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अजय एहसास

Abstract Inspirational

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अजय एहसास

Abstract Inspirational

आ गया और इक नया साल

आ गया और इक नया साल

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बीते कुछ सालों में हमने 

खोया है बहुत चलते-चलते ,

आ गया और इक नया साल 

हिलते- हिलते, कंपते- कंपते। 


खेतों की मेंड़ो पर रहते 

कीचड़ और धूल से सने पांव, 

वो कोहरे की आंचल में लिपटा, 

ठिठुरा मेरा छोटा सा गांव। 

घर में चक्की ,जातों के गीत 

सुनते बैलों की कदमताल, 

करघे कोल्हू चलते देखा 

बच्चे नहरों में फेकें जाल। 

धीरे-धीरे सब खत्म हुआ 

रह गए हाथ मलते- मलते। 

आ गया और इक नया साल 

हिलते- हिलते, कपते- कंपते ।।


चूल्हे के रोटी की खुशबू 

और सुबह-सुबह बच्चों के शोर, 

चौके की गुनगुन भी सुनते 

वृद्धो के भजनों से हो भोर। 

मिट्टी की हांडी में पकती 

सोंधी सी थी लगती वो दाल, 

गांवों में अब कुआं देखें 

देखो हो गया है बहुत साल 

तीखी कचालू गन्ने का रस, 

भूलें मैगी तलते- तलते । 

आ गया और इक नया साल, 

हिलते- हिलते, कंपते -कंपते।।


ना गली, तलाब न कुआं रहट, 

ना ही दिखती अब चौपालें 

घर में दरवाजे तब ना थे ,

पर दिखते अब हर घर ताले । 

घर के बाहर घर का बच्चा, 

नंगा दौड़े वह नंगे पांव 

कक्का दद्दा बैठे मिल के ,

सहलाएं इक दूजे के घाव। 

रिश्ते नाते सब उलझ गए, 

अपनों को ही ठगते- ठगते। 

आ गया और इक नया साल, 

हिलते- हिलते, कंपते- कंपते।।


वो संध्या वंदन वो फगुआ, 

झूमर बैसाखी ना दिखती। 

कच्चे मकान रिश्ते पक्के, 

छप्पर भी अब तो ना दिखती। 

पूजा भी अब हो चुकी मौन, 

ना सुनते अब आरती अजान। 

सब गए कहां ये नहीं पता, 

दादा चाचा भैया रहमान। 

राबिया मुनिया जो साथ रहें, 

हुए दूर शाम ढलते- ढलते। 

आ गया और इक नया साल, 

हिलते- हिलते, कंपते- कंपते।।


संस्कार, संस्कृति छूट गई, 

ये जीवन भी जंजाल हुआ। 

धन तो देखा बहुतों के पास, 

तन मन से वो कंगाल हुआ। 

प्रार्थना यही सब मिलके रहें, 

भावना भी हो पर उपकारी। 

हम कर्म करें मिलकर ऐसा, 

जो हो सबके ही हितकारी। 

खोकर भी सब हम खुश रहते, 

दें शुभकामनाएं हंसते-हंसते। 

'एहसास' करो सब भूल चूक, 

दोहराना ना रस्ते- रस्ते। 

आ गया और इक नया साल, 

हिलते- हिलते, कंपते- कंपते।। 



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