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अजय एहसास

Drama Fantasy Inspirational

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अजय एहसास

Drama Fantasy Inspirational

बफर सिस्टम

बफर सिस्टम

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एक वैवाहिक समारोह में 

भोजन भक्षण कार्यक्रम में 

भोज्य पदार्थों को नोचते घसोटते 

एक दादाजी दिखे । 

उन्हें देखकर 

हम अंदर ही अंदर हिले 

फिर उनसे जाकर मिले 

हमने कहा 

दादाजी आप भजन आंखें मूंद करते हैं 

और भोजन में उछल कूद करते हैं 

दाल व चावल से पूरी तरह सने आपके हाथ हैं 

आज दादी जी को छोड़कर प्लेट आपके साथ हैं । 


आपकी भक्षण प्रक्रिया समझ नहीं आ रही है 

आप दाल चूस रहे हैं पानी सूंघ रहे हैं 

चावल पी रहे हैं, नींबू चबा रहे हैं 

और पूरी छोड़ मिठाई दबा रहे हैं । 

हमने सुना था 

आप खाना खाते समय कपड़े तक उतार देते हैं 

जमीन पर बैठकर आराम से खाते हैं 

पर आज का तो नजारा ही कुछ और है 

बदन पर कुर्ता, सदरी, और पैर में जूते पर जोर है । 


पहले तो आप भोजन करने से पहले 

भोजन भगवान को अर्पण करते थे 

फिर उसे प्रसाद रूप में ग्रहण करते थे 

पर आज अकेले-अकेले खाते हैं 

तनिक भी ना शर्माते हैं 

और भगवान क्या मक्खियों के लिए भी ना गिरते हैं। 


अच्छा ये बताइए 

कि आजकल भोजन की जो रीति है 

उससे आपकी कितनी प्रीति है ? 

दादाजी बोले देख तू कुछ ज्यादा बोल गया 

जो मेरे संस्कारी वजन तोल गया 

सुन मैं भजन भले ही आंखें मूंद कर करता हूं 

पर कभी मेरे सामने रखा प्रसाद उठा कर देख 

तुझे कैसे पकड़ता हूं 

आज मैं यहां भोजन में उछल कूद ना करूं 

तो क्या खाने बिना मरूं । 


तू कहता है दाल चावल से मेरा हाथ सना है 

अरे यह भोजन मेरे लिए ही तो बना है 

अगर तेरी दादी को साथ लाता 

तो मैं खाना नहीं खा पाता 

उनको अपने हाथों से खिलाना पड़ता 

उनके घुटने में परसों से दर्द है 

मुझे ही सहलाना पड़ता। 


मेरा भक्षण करना तुझे समझ नहीं आएगा 

अबे, चाहे जैसे खा आखिर पेट में ही जाएगा 

खाते समय कपड़े इसलिए उतारता था 

क्योंकि मैं अपने आप को 

जानवरों का वंशज मानता था 

और जमीन पर इसलिए बैठ जाऊं 

कि इतना बड़ा पेट नहीं था 

कि कुर्सी पर ही बैठ पाऊं या खड़े-खड़े खाऊं । 


आज मैं जूता कुर्ता सदरी इसलिए पहना 

क्योंकि यही है इंसानों का गहना 

जहां तक भोजन की रीति को लेकर 

आपसी टकराव है 

तो ये जान लो 

कि बफर सिस्टम से मेरा गहरा लगाव है । 


इस रीति के पांच सिद्धांत हैं 

चाहे जितना, चाहे जो, चाहे जब ,

चाहे जहां, चाहे जैसे , 

मैं इनको पूर्णतया अपनाता हूं 

और इसके खोजकर्ता को सिर झुकाता हूं 

एक बार खाता हूं, टहलता हूं ,

पचाता हूं ,और फिर खाने में जुट जाता हूं 

ये प्रक्रिया पूरी रात चलाता हूं 

लोग रोशनी से घर को 

तो मैं तरह-तरह के व्यंजनों से 

अपने पेट को सजाता हूं। 




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