मंदी कल्पना
मंदी कल्पना
इस फैंटेसी वर्ड से अक्सर
दिमाग़ में आतीं बातें गंदी
पर कुछ ज्यादा बिजी हूँ तो
कल्पना भी आजकल मंदी
कल्पना भी आजकल मंदी
मुझे कोई रोग हुआ तो नहीं
अपनी भावनाओं से खेलना
किसी किस्म का जुआ तो नहीं
किसी ने बताया योग किया करो
मन बिलकुल हो जाएगा साफ
मगर जाड़े में सुबह कौन उठे
छोड़कर कौंसा सा एक लिहाफ
मनोवैज्ञानिक के पास गया तो
पूरी कहानी सुनी मेरी उसने
अपनी कुछ कविताएं दिखाईं
तारीफ भी कर दी मेरी उसने
पर असली फैंटेसी तो है मेरी
लाइक, कमेंट ढेर से आ गए
एडिटर साहेब को मेरे लिखे
छंद कुछ ज्यादा ही भा गए
ऐसी बातें करोगे तो कविराज
किसी को गुस्सा भी आ सकता
मुझे क्या मुझे तो दिल से लिखना
कल्पना में कुछ भी लिखा जा सकता।