मैं कोई कवि नहीं हूॅं
मैं कोई कवि नहीं हूॅं
मैं कोई कवि नहीं हूॅं,बस दिल के भाव लिखता हूॅं।
चुनिंदा वर्णों को सजा कर,मैं शब्दों को पिरोता हूॅं।
मेरे छंदों में रसों का हो, आभाव,मुझे माफ़ करना।
मुझे मालूम नहीं 'दीपक', किस भाव को संजोता हूॅं।
मैं कोई कवि नहीं हूॅं,बस दिल के भाव लिखता हूॅं।
चुनिंदा वर्णों को सजा कर,मैं शब्दों को पिरोता हूॅं।
मेरे छंदों में रसों का हो, आभाव,मुझे माफ़ करना।
मुझे मालूम नहीं 'दीपक', किस भाव को संजोता हूॅं।