हमने कहा -क्यों इतनी सर्दी में सताती हो रविवार के दिन भी दफ्तर खुलवाती हो हमने कहा -क्यों इतनी सर्दी में सताती हो रविवार के दिन भी दफ्तर खुलवाती हो
डरता तो किसी के बाप से भी नहीं बस श्रीमती की तर्जनी से डरता हूं । डरता तो किसी के बाप से भी नहीं बस श्रीमती की तर्जनी से डरता हूं ।
जब जब भी वे ऐसे ही शांत बैठीं हैं तब तब हमारी पीठ दर्द से रही ऐंठी हैं। जब जब भी वे ऐसे ही शांत बैठीं हैं तब तब हमारी पीठ दर्द से रही ऐंठी हैं।
जो भी फरमाइशें हैं तुम्हारी थोड़ा रुक रुक कर फरमाओ। जो भी फरमाइशें हैं तुम्हारी थोड़ा रुक रुक कर फरमाओ।