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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -६५; उत्तम का मारा जाना, ध्रुव का यक्षों के साथ युद्ध

श्रीमद्भागवत -६५; उत्तम का मारा जाना, ध्रुव का यक्षों के साथ युद्ध

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मैत्रेय जी बताएं विदुर जी को कि 

ध्रुव ने विवाह किया भ्रमि से 

प्रजापति शिशुमार की पुत्री वो 

कल्प और वत्सर दो पुत्र हुए उनके।


दूसरी स्त्री महाबली ध्रुव की 

ईला नामक वायु पुत्री थी 

उसके उनके उत्कल एक पुत्र 

और एक कन्या हुई थी।


उत्तम का अभी विवाह न हुआ था 

एक दिन गया वो शिकार खेलने 

हिमालय पर्वत पर मार दिया उसे 

वहां के एक बलवान यक्ष ने।


साथ में माता सुरुचि भी 

परलोक सिधार गयीं उसके गम में 

ध्रुव ने जब ये सब सुना तो 

मन अशांत हुआ क्रोध और शोक में।


विजयप्रद रथ पर सवार होकर वो 

यक्ष देश में जा पहुंचे थे 

हिमालय में अलकापुरी देखि जहाँ 

अनेकों भूत पिशाच रहते थे।


ध्रुव ने वहां पर शंख बजाया 

ध्वनि से यक्ष पत्नियां गयीं डर 

यक्षों ने ये सब देखा तो 

अस्त्र ले टूट पड़े वो ध्रुव पर।


प्रचंड धनुर्धर महारथी ध्रुव ने 

उनपर वाणों की कर दी वर्षा 

हर यक्ष को तीन तीर लगे 

यक्ष ये देखें, करें प्रशंशा।


फिर यक्षों ने भी ध्रुव पर 

वाणों से प्रहार कर दिया 

संख्या उनकी बहुत ज्यादा थी 

वाणों ने ध्रुव को बिलकुल ढक दिया।


यक्ष लोग करें विजय की घोषणा 

सिंह की तरह वो गर्जना कर रहे 

इसी बीच प्रकट हो गया 

ध्रुव का रथ वाणों को चीर के।


वाणों की वर्षा की यक्षों पर 

छिन्न भिन्न किये शस्त्र उनके 

वाण यक्षों के शरीर में घुस गए 

जीवित बचे जो, भाग खड़े हुए।


इतने में समुन्द्र की गर्जना 

और आंधी का शब्द सुना वहां 

दिशाओं में थी धूल उड़ रही 

बादलों से खून और पीव की वर्षा।


आकाश में एक पर्वत दिखाई दिया 

वर्षा होने लगी पत्थरों की 

देखें सिंह और हाथी आ रहे 

भागे दौड़े ध्रुव की तरफ ही।


देखें समुन्द्र पृथ्वी को डुबोता 

उनकी तरफ ही आ रहा था 

उन असुरों ने आसुरी माया से 

ये सब कौतुक रचा था।


तब कुछ मुनियों ने वहां आकर 

कामना की मंगल की ध्रुव के 

कहें भगवन नारायण स्वयं ही 

तुम्हारे शत्रु का संहार करें।


भगवन हरि के नाम से ही 

मनुष्य मृत्यु से बच जाता 

मन में प्रभु हरि को स्थित कर 

तुम भी उनकी करो आराधना।



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