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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत-२७६; बल्वल का उद्धार और बलराम जी की तीर्थ यात्रा

श्रीमद्भागवत-२७६; बल्वल का उद्धार और बलराम जी की तीर्थ यात्रा

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श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित

जब पर्व का दिन आया था

धूल की वर्षा होने लगी

बड़ा भयंकर अंधड़ चलने लगा।


पीव की दुर्गंध आने लगी

और फिर बल्वल दानव ने

मल मूत्र आदि वस्तुओं की

वर्षा कर दी यज्ञ शाला में।


त्रिशूल लेकर स्वयं दिखाई दिया फिर

बड़ा ही भयंकर लग रहा वो

उसे देखकर स्मरण किया फिर

बलराम जी ने मूसल और हल को।


हल के अगले भाग से खींचकर

बल्वल दैत्य को उन्होंने

सिर पर मूसल चलाया

ललाट फट गया उसका जिससे।


धरती पर वो गिर पड़ा

बलराम जी की स्तुति मुनि करें

बलराम जी का अभिषेक भी किया

बहुत से आशीर्वाद दिए उन्हें।


दिव्य वस्त्र और आभूषण भी

और एक तेजस्वी माला दी

जिसके पुष्प सदा सुन्दर रहते थे

मुरझाते नही थे कभी।


ऋषियों की आज्ञानुसार बलराम जी

कौशिकी नदी के तट पर गए

स्नान करके उस सरोवर पर गए

निकलती सरयू नदी जहां से।


कई नदियों में स्नान करते हुए

गंगासागर, महेन्द्र पर्वत गए वो

परशुराम ने वहाँ अभिवादन किया

गए फिर कार्तिकेय के दर्शन को।


महादेव जी के निवासस्थान 

श्री शैलपर पहुँचे थे फिर वे

द्रविड़ देश में वेंकटाचल

बाला जी का दर्शन किया उन्होंने।


वहाँ से कामाक्षी तथा

कावेरी में स्नान करते हुए

श्री रंगक्षेत्र में पहुँचे जहां

विष्णु सदा विराजमान हैं रहते।


ऋषभ पर्वत, दक्षिण मथुरा वहाँ से

गए सेतुबंध की यात्रा को

मल्यपर्वत फिर पहुँच गए

सात कुलपर्वतों में एक हैं जो।


दक्षिण समुंदर गए, कन्याकुमारी भी

गए वो और कई तीर्थों में

फिर केरल में लोट कर वो

शंकर जी के गोकर्ण आ गए।


सर्वदा विराजमान शंकर गोकर्ण में

दंडकारण्य आ गए वहाँ से

महिषमतिपुरी है वहाँ

तट पर पवित्र नदी नर्मदा के।


मनु तीर्थ में स्नान करके वहाँ

चले गए प्रभास क्षेत्र में

वहाँ उन्होंने ब्राह्मणों से सुना

कुरुक्षेत्र युद्ध के बारे में।


सुना कि संहार हो गया

अधिकांश क्षत्रियों का युद्ध में

पृथ्वी का बहुत सा भार उतर गया

ऐसा अनुमान किया था उन्होंने।


जिस दिन रणभूमि में पहुँचे

दुर्योधन- भीमसेन युद्ध चल रहा

युधिष्ठिर, कृष्ण आदि ने उन्हें

देखकर प्रमाण किया था।


भीमसेन- दुर्योधन का युद्ध देख

कहा उन्हें ‘ दोनो तुम वीर हो

बल पोरुष भी एक समान है

एक समान बलशाली दोनो।


व्यर्थ ही तुम युद्ध मत करो

इसलिए बंद करो युद्ध ये ‘

परन्तु वैरभाव बढ़ गया था उनका

बलराम की बात ना मानी उन्होंने।


बलराम जी ने तब निश्चय किया

ऐसा ही है प्रारब्ध अब इनका

विशेष आग्रह ना करके उन्हें

द्वारकापुरी को प्रस्थान किया।


वहाँ से नेमिषारण्य क्षेत्र गए

ऋषियों ने उनसे यज्ञ कराया वहाँ 

उन ऋषियों को बलराम जी ने तब

विशुद्ध तत्वज्ञान का उपदेश दिया।


अपनी पत्नी रेवती के साथ में

यज्ञान्तस्नान किया उन्होंने

परीक्षित, बलराम जी तो स्वयं ही

भगवान हैं, वो तो बस लीला कर रहे।


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