श्रीमद्भागवत-२७२; राजसूय यज्ञ की पूर्ति और दुर्योधन का अपमान
श्रीमद्भागवत-२७२; राजसूय यज्ञ की पूर्ति और दुर्योधन का अपमान
राजा परीक्षित ने पूछा, भगवन
दुर्योधन क्यों दुखी हुआ था
शुकदेव जी ने कहा, परीक्षित
राजा युधिष्ठिर, जो तुम्हारे दादा।
बड़े ही महात्मा थे और
राजसूय यज्ञ में उनके
कौरव, पांडव और बाक़ी सभी
कोई ना कोई काम देख रहे।
भीमसेन भोजनालय देख रहे
दुर्योधन कोषाअध्यक्ष थे
सहदेव अभ्यागतों के सत्कार में नियुक्त
कृष्ण पाँव पखारें अतिथियों के।
विभिन्न विभिन्न कामों में नियुक्त
और भी सभी लोग वहाँ पर
सबके सब वैसा काम करें
जो भी कहते युधिष्ठिर।
यज्ञ के बाद दक्षिणा दे चुके जब
और शिशुपाल मारे गए थे
तब गंगा में धर्मराज युधिष्ठिर
यज्ञान्त स्नान करने लगे।
देवता, गन्धर्व पुष्प बरसा रहे
और उस उत्सव को देखने
राजमहिलाएँ आयीं हुईं
और देवियाँ भी आकाश मैं।
रंग उड़ा रहे, क्रीड़ा कर रहे
सभी आनंद में मगन हो रहे
द्रोपदी आदि रानियों के संग
शोभायमान हो रहे युधिष्ठिर थे।
जितने लोग भी आए थे यज्ञ में
देवता, ऋत्विज, लोकपाल आदि
युधिष्ठिर ने उन सब की
यथायोग्य पूजा की थी।
सभी लोग उस यज्ञ की
प्रशंसा करक़र जाने लगे थे
कृष्ण, बलराम और कुटुम्बियों को
रोक लिया वहीं युधिष्ठिर ने।
युधिष्ठिर के अन्तपुर का सौंदर्य
और यज्ञ से यश देखकर उसका
दुर्योधन के मन में तब
बड़ा ही ज़्यादा डाह हुआ।
पांडवों के लिए मयदानव ने
जो महल बनवाए थे उनमें
द्रोपदी और कृष्ण की रानियाँ
निवास करती, पतियों की सेवा करें।
राजभवन की उस शोभा देखकर
दुर्योधन को बड़ी जलन हुई
इसका कारण ये भी था कि
द्रोपदी में आसक्ति थी दुर्योधन की।
एक दिन कृष्ण आदि के साथ में
विराजमान थे युधिष्ठिर सभा में
दुर्योधन भी वहीं आ गया
दुशासन आदि भाइयों के साथ में।
झिड़के वो क्रोधकर द्वारपालों को
और उस सभा में मयदानव ने
ऐसी माया फैला रखी थी
कि दुर्योधन मोहित हो गया उससे।
स्थल को जल समझकर वहाँ
वस्त्र समेट लिए दुर्योधन ने
और जल को स्थल समझकर
दुर्योधन गिर गया उसमें।
भीमसेन, राजरानियाँ, नरपति
उसको गिरते देख हंसने लगे
श्री कृष्ण का अनुमोदन तो था उन्हें
यद्यपि युधिष्ठिर उन्हें रोक रहे थे।
दुर्योधन बड़ा लज्जित हो गया
क्रोध से रोम रोम जलने लगा
मुँह लटकाकर चुप चाप वो
वहाँ से हस्तिनापुर चला गया।
इस प्रकार घटना को देखकर
हाहाकार मच गया सत्पुरुषों में
युधिष्ठिर का मन भी खिन्न हो गया
परन्तु भगवान चुप ही रहे।
उनकी इच्छा थी कि किसी प्रकार
उतर जाए पृथ्वी का भार ये
दुर्योधन को ये भ्रम हुआ था
सच पूछो तो उन्ही की दृष्टि से।