श्रीमद्भागवत-२५२; प्रद्युमन का जन्म और शंभरासुर का वध
श्रीमद्भागवत-२५२; प्रद्युमन का जन्म और शंभरासुर का वध
श्री शुकदेव जी कहते हैं, परीक्षित
कामदेव अंश हैं वासुदेव के ही
क्रोधाग्नि से भस्म हो गए थे
वो पहले रुद्र भगवान की।
अब फिर शरीर प्राप्ति के लिए
वासुदेव का ही आश्रय लिया
कृष्ण के द्वारा प्रद्युमन नाम से
रुक्मिणी के गर्भ से जन्म लिया।
सौंदर्य, वीर्य आदि सभी गुणों में
श्री कृष्ण से कम ना थे वे
शंभरासुर उन्हें हर ले गया
जब वे दस दिन के ही थे।
समुंदर में फेंक दिया बालक को
पता चल गया था उसको ये
कि मेरा भारी शत्रु है और
मेरी मौत का ये कारण बने।
समुंदर में बालक प्रद्युमन को
एक भारी मच्छ निगल गया
तदनंतर वो मछलियों के साथ में
मछुआरों के जाल में फँस गया।
मछुआरों ने उस भारी मच्छ को
भेंट दे दिया शंभरासुर को
शंभरासुर के रसोईये थे जो
काटने लगे जब उसको।
पेट में एक बालक देखा था
दे दिया उसे एक दासी को
मायावती नाम था उसका
बालक को देख शंका हुई उसको।
तब नारद जी ने आकर वहाँ
बालक की सब कथा सुनाई
कामदेव का रूप है बालक ये
कृष्ण का पुत्र, ये बात बताई।
कैसे मच्छ के पेट में गया
कह सुनाया उसको यह सब भी
परीक्षित, ये मायावती जो
कामदेव की पत्नी रति थी।
कामदेव को भस्म किया था
जिस दिन शिव शंकर जी ने
पुनः उत्पन्न होने की प्रतीक्षा
कर रही थी वो उसी दिन से।
जब उसको मालूम हुआ कि
शिशु के रूप में मेरे पति ही हैं ये
तब उस बालक के प्रति बहुत
प्रेम भाव लगीं वो रखनें।
प्रद्युमन थोड़े ही दिनों में
जवान हो गया, और रूप जो उसका
बहुत अद्भुत था और रति करने लगीं
प्रेम में भरकर उनकी सेवा।
उसके भावों में परिवर्तन देखकर
प्रद्युमन ने उसको कहा था
‘ देवी, तुम तो मेरी माँ समान हो
छोड़ा तुमने क्यों भाव माता का।
हाव भाव दिखा रही तुम
कामिनी के समान ही मुझको ‘
रति ने कहा ‘ प्रभु, आप
भगवान नारायण के पुत्र हो।
शंभरासुर तुम्हें चुरा लाया था
स्वयं कामदेव, आप मेरे पति
और मैं ही रति हूँ
पत्नी आपकी मैं सदा की।
यह शंभरासुर बहुत प्रकार की
माया जनता है, इसलिए
जीत लेना बहुत कठिन है
और कठिन वश में करना इसे।
मोहन आदि मायाओं के द्वारा
आप शत्रु को नष्ट कीजिए
पुत्र स्नेह में बहुत दुखी हो रहीं
आपकी माता , आपके खोने से।
ये कहकर मायावती रति ने
परम यशस्वी प्रद्युमन को
महामाया नाम की विद्या सिखाई
सभी माया का नाश करे जो।
शंभरासुर के पास गए प्रद्युमन
युद्ध के लिए उसे ललकारा
कटु वचन उनके सुनकर
शंभरासुर था तिलमिला उठा।
गदा ले चला दी प्रद्युमन पर
प्रद्युमन ने गदा से उसे गिरा दिया
मयासुर की आसुरी माया से
वो आकाश में चला गया।
वहाँ से अस्त्र शस्त्र चलाकर
प्रद्युमन पर वार करने लगा
महामाया का प्रयोग कर प्रद्युमन ने
उसकी माया को नष्ट कर दिया।
सिर धड़ से अलग कर दिया
शंभरासुर का फिर प्रद्युमन ने
आकाशमार्ग से द्वारका चलीं
पति को लेकर रति अपने।
आकाश में गोरी रति और
सांवले प्रद्युमन लगें ऐसे
मानो रति बिजली हों और
प्रद्युमन हों मेघ के जैसे।
भगवान के अन्तपुर में प्रवेश किया
स्त्रियों ने कृष्ण समझा उन्हें
और जब पता चला कि
कोई और है कृष्ण नहीं ये।
आनन्द और विस्मय से भरकर
इस श्रेष्ट दम्पति के पास आ गयीं
उसी समय रुक्मिणी जी भी
सहसा ही वहाँ आ पहुँचीं।
सोचें कि यह नर रत्न कौन है
और किसका बालक है वो
मेरा भी शिशु जो खो गया था
जीता तो ऐसा ही होता वो।
उसकी अवस्था तथा रूप भी
इसी के समान हुआ होगा
हैरान कि इसे कैसे प्राप्त हुई
कृष्ण की चाल ढाल, रूप रेखा।
हो ना हो ये वही बालक है
गर्भ में धारण किया था जिसे मैंने
वो ये सब सोच ही रहीं थीं कि
प्रवेश किया वहाँ भगवान ने।
देवकी, वासुदेव भी साथ थे उनके
भगवान तो सब कुछ थे जानते
परन्तु वे कुछ नही बोले
चुपचाप वहाँ खड़े रहे।
इतने में नारद जी आ पहुँचे
सब घटनाएँ कह सुनाईं
सुनकर ये सब स्त्रियाँ जो वहाँ थीं
बहुत चकित और आनंदित हुईं।
अभिनंदन किया प्रद्युमन का
कृष्ण, बलराम , रुक्मिणी और सब ने
हृदय से लगाया दोनों को
आनन्द में सारे भर गए।
द्वारका वासियों को पता चला तो
कहने लगे कि देखो कैसे
कितने सौभाग्य की बात है
मरकर लौट आया बालक ये।
प्रद्युमन का रूप रंग सब
इतना मिलता था भगवान से
कि उसे देखकर माताएँ भी
कृष्ण समझ लेतीं थी उन्हें।
