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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत १७ ;परीक्षित का धर्म और पृथ्वी से संवाद

श्रीमद्भागवत १७ ;परीक्षित का धर्म और पृथ्वी से संवाद

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महाप्रस्थान जब पांडवों ने किया 

परीक्षित राज करें पृथ्वी पर 

इरावती से विवाह हुआ उनका 

जन्मजेय अदि चार हुए पुत्र!


कृपाचार्य को आचार्य बनाकर 

तीन अशव्मेघ यज्ञ किये थे 

महान गुणों के धनी थे वो और 

धर्म से वो कभी ना डिगे थे!


एक बार उन्होंने देखा 

कलयुग शूद्र रूप धरा है 

राजा के वेश में है वो 

गाय बैल को मार रहा है!


पकड़ के उसको बलपूर्वक 

दंड दिया परीक्षित ने उसे 

शौनक पूछें सूत जी से कि 

मारा क्यों नहीं उन्होंने उसे!


सूत जी ने ये कथा सुनाई 

कुरुजांगल में परीक्षित रहे जहाँ 

सुना उन्होंने कि उनके राज्य में 

कलयुग का प्रवेश हो गया!


धनुषबाण हाथ में लेकर 

दिग्विजय के लिए वो जाएं 

रथ पर वो सवार हुए और 

नगर के बाहर निकल वो आये!


लोग करें प्रशंसा जब वहां 

पूर्वज पांडवों की और कृष्ण की 

 प्रसन्न हुए परीक्षित सब सुनकर 

कृष्ण में भक्ति और भी बढ़ गयी!


एक दिन शिविर के थोड़ी दूरी पर 

आश्चर्यजनक एक देखा मंजर 

एक पैर पर घूम रहा था 

धर्म बैल का रूप धारण कर!


एक स्थान पर बैल को वहां 

गाय मिली जो बहुत दुखी थी 

जैसे मृत्यु पुत्रों की हो गयी 

व्याकुल बहुत थी, वो पृथ्वी थी!


शरीर था उसका हीन हो गया 

धर्म ने पृथ्वी से ये पूछा 

दुखी बहुत तुम लग रही हो 

किसकी कर रही तुम चिंता!


इस लिए क्या तुम दुखी हो 

कि कृष्ण चले गए तुम्हे छोड़ कर 

भार उतारने आये तुम्हारा 

रक्षा करें थे, हर मोड़ पर!


पृथ्वी बोली, हे धर्म तुम 

मुझे जो कुछ भी पूछ रहे हो 

तुम स्वयं ही जानो सब कुछ 

तुम्हारी रक्षा भी करते थे वो!


तुम्हारे भी चारों चरण थे 

कृपा थी जब कृष्ण की तुमपर 

सौभाग्य का मेरे अंत हो गया 

अब उनके चले जाने पर!


बातें दोनों कर रहे थे 

तभी वहां पर परीक्षित आये 

देखा एक शूद्र राजा वेश में 

गाय बैल को पीटता जाये!


बैल का पैर सिर्फ एक है 

भयभीत बहुत और हो रहा दुखी 

ठोकरें खाकर वो गाय भी 

रो रही, लग रही वो भूखी!


परीक्षित ने था धनुष चढ़ाया 

उस राजा से पूछा कौन तू 

दुर्बल प्राणीओं को मारे है 

अपराधी, वध करने योग्य तू!


परीक्षित ने तब धर्म से कहा 

तुम्हे देख मुझे कष्ट है होता 

एक पैर पर तुम हो चल रहे 

क्या बैल रूप में कोई हो देवता!


अब आप निर्भय हो जाओ 

शोक तुम्हारा हर लूं मैं सब 

इस दुष्ट को दंड हूँ देता 

इसको मार ही डालूं मैं अब!


आप बताएं तीन पैर ये 

किस पापी ने आपके काटे 

धर्म बोला कि दुःख का कारण 

अलग अलग हैं लोग बताते!


कुछ कहें दुःख कर्म के कारण 

प्रारब्ध से मिलता, कोई ये माने 

कुछ कहें स्वाभाव से मिले 

कुछ कहें ईश्वर ही जाने!


कोई कहे कि दुःख का कारण 

 जान न सकें, तर्क के द्वारा 

और कोई अगर कहना चाहे 

बतला न सके, बातों के द्वारा!


ठीक है कौन सा मत इनमें से 

बुद्धि से विचार करो तुम 

सुनकर परीक्षित प्रसन्न हुए थे 

खेद मिट गया, ये ज्ञान सुन!


उपदेश धर्म का आप दे रहे 

वृषभ के रूप में आप धर्म हैं 

सतयुग में आप के चार चरण थे 

कलयुग में अब एक चरण है!


तप, पवित्रता, दया और सत्य ये 

चार चरण थे आपके ये तब 

अधर्म के कारण तीन चले गए 

सत्य ही सिर्फ बचा एक अब!


इसी के बल पर आप जी रहे 

इसे भी काल कहे ग्रास करूं मैं 

तुम्हारे साथ गाय है, लगता है 

पृथ्वी जो प्रभु से बिछुड़ गयी है!


मरने के लिए कलयुग को 

हाथ में जब तलवार उठाई 

कलयुग चरणों में था पड गया 

रक्षा की गुहार लगाई!


परीक्षित शरणागत के रक्षक 

मारा नहीं, वो कलि से कहें 

अधर्म के तुम हो एक सहायक 

मेरे राज्य में तू ना रहे!


यहाँ निवास सत्य धर्म का 

क्षण के लिए भी नहीं ठहरना 

कलयुग कहे,आप बताएं 

कहाँ पर मैं वास करूं अपना!


द्यूत, मद्यपान, स्त्रीसंग और हिंसा 

इन स्थानों पर रह सकता है 

असत्य, मद, आसक्ति, निर्दयता 

जहाँ चार अधर्म निवास करते हैं!


और स्थान जब माँगा कलि ने 

एक स्थान दे दिया उसे, स्वर्ण 

पांच स्थान मिल गए कलयुग को 

झूठ, मद, काम, वैर और रजोगुण!


तपस्या, शौच, दया, ये तीनों 

धर्म के पैरों को जोड़ दिया 

पृथ्वी को ढांढस बंधाया और 

उन्होंने उसको आश्वासन दिया!


 



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