मुक्तक : संयम की लकीर
मुक्तक : संयम की लकीर
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संयम की लकीर शनै : शनै : सिकुड़ती जा रही है
आवारगी की फसल दिनोंदिन बढती ही जा रही है
बड़ों की नसीहत, लोक लाज पीछे छूट गये हैं कहीं
मनमानी की सुरसा मर्यादाओं को लीलती जा रही है।