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ritesh deo

Abstract Classics

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ritesh deo

Abstract Classics

शवयात्रा

शवयात्रा

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दो तीन किलो से शुरू हो साठ सत्तर तक पहुंचा मांस का लोथडा़

और उसपे लगा हुआ था उम्र भर सजाया संवारा थोपड़ा

आज स्पंदनहीन हो के पड़ा है


विदाई के लिए आस पास मित्र बंधु परिवार सब खड़ा है

शरीर रूपी मकान को आज किरायेदार ने खाली किया है

अब उन अणु परमाणुओं का होना कोई और पिया है


रह रहा था जब तक इस मकान में वो किरायेदार

तब तक किसी ने नहीं किया था इस बात से तकरार

अब जब किरायेदार ने खाली किया है मकान

सभी हो रहे हैं हैरान


मृत्यु राक्षस की इस धटना का कोई भी नहीं करता जयकारा

क्योंकि सभी को एकमत जीवन ही है प्यारा

न जाने कैसी ये घटना है जिससे हर कोई है हारा

बहुत गंभीर हो कर सभी दे रहे हैं विदाई


वैसे तो ये मृत्यु सभी कष्टों को हरने वाली है माई

अर्थी जिसमें से निकल चुका है रथी अब सज चुकी है

बिना रथी के रथ की व्यर्थता सदियों से सिद्ध हो चुकी है

हालांकि अर्थी को तरह तरह से सजाया गया


पर उसमें अब मतलब का असल दम कहाँ रहा

असल में सब रथी के रथ युक्त बिताये क्षणों को कर रहे हैं याद

कोई अनजान सी ही कहानी ही लिखी ही जाने वाली है आज के बाद

पांच तत्वों का ये हसीन मकान

अब काल का बना है पकवान


अलविदा अब इस हसीन मकान के रहवासी

जिंदों को ये मृत्यु की घटना है यों तो शिक्षक अच्छी खासी।


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