खेल
खेल
सुख-दुख से यह ज़िन्दगी, रचे निराले खेल।
कुशल खिलाड़ी सीखते, हार-जीत का मेल।।१
लोभ-मोह को फूँककर, करते जाओ काज।
गेंदें ज्यों देते उड़ा, क्रिकेट बल्लेबाज।।२
साँस कबड्डी रोककर, रखते मन में आस।
बाधाओं से छूटकर, बन जाना है खास।।३
निशाने पर सतोलिए, कहें, लक्ष्य को भेद।
पिट्टो में की गोटियाँ, पुनः सजीं बिन खेद।।४
बास्केट बॉल की टोकरी, ऊँची देते टाँग।
बड़े-बड़े सपने भरें, है उसकी यह माँग।।५
अद्भुत खेल छुआ-छुई, करती भागम-भाग।
छू ले मंजिल दौड़कर, मनुआ! अब तो जाग।।६
इक्कट-दुक्कट कूदकर, करते सभी कमाल।
पंक्ति कभी जो छू गए, हार करे बेहाल।।७
सर्कस लेकर आ गया, पशुओं के सब खेल।
मास्टर आता रिंग में, जंगली करते मेल।।८
कठपुतली के नाच से, हर्षित होते लोग।
वह मन ही मन है विकल, अपना बंधन भोग।।९
रस्सी पर पग साधती, नन्ही मुनिया रोज।
दिल-दिमाग का संतुलन, जीवन भर की खोज।।१०
बादशाह का एक घर, है वजीर सिरमौर।
राजनीति शतरंज में, शह-मात का दौर।।११