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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत १६ ;कृष्ण विरह में पांडवों का स्वर्ग सिधारना

श्रीमद्भागवत १६ ;कृष्ण विरह में पांडवों का स्वर्ग सिधारना

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अर्जुन द्वारका गए हुए थे 

बीत चुके थे बहुत महीने 

जब वो लौट के ना आये तो 

युधिष्ठर को अपशकुन लगे दिखने। 


देखा काल की गति विकट है 

ऋतुएं समय पर ना आएं 

लोग क्रोधी और लोभी हो गए 

व्यव्हार में कपट है बढ़ता जाये। 


मित्रता में छल मिला हुआ 

सभी आपस में लड़ते रहते 

मन में थोड़ी शंका हुई उनके 

वो तब भीमसेन से कहते। 


हमने अर्जुन को भेजा था 

लेने खबर अपने सगों की 

कहा था उसको लेकर आना 

कुशल क्षेम प्रभु श्री कृष्ण की। 


सात महीने बीत गए हैं 

अब तक वो ना लौट के आया

कहीं वो समय तो नहीं आ गया 

नारद जी ने था जो बतलाया। 


बहुत भारी अपशकुन हो रहे 

जैसे अनिष्ट कोई होने वाला 

कहीं कृष्ण अब ख़त्म कर रहे 

संसार की अपनी सारी लीला। 


मन ही मन चिंता कर रहे 

तभी अर्जुन वहां लौट के आये 

दिखने में बहुत आतुर लगें 

प्रणाम किया था मुँह लटकाये। 


नेत्रों में थे आंसू उनके 

शरीर उनका कांतिहीन था 

युधिष्ठर घबरा गए देखकर 

उन्होंने तब अर्जुन से पूछा। 


द्वारका में सम्बन्धी हमारे 

कुशल से तो वो सभी हैं 

तुम अपनी भी कुशल बताओ 

तुमको तो कोई दुःख नहीं है। 


शोक से सूखा मुख अर्जुन का 

उडा रंग चेहरे का उनका 

ध्यान में डूबे थे कृष्ण के 

उत्तर न दे सके प्रशनोँ का। 


फिर रुंधे हुए गले से बोले 

मुझे ठग ले गए श्री कृष्ण 

वो मेरे प्रिय मित्र थे 

कैसे रह पाऊं उनके बिन। 


स्त्रिओं को था जब मैं ला रहा 

कृष्ण आज्ञा मानी थी मैंने 

मार्ग में कुछ दुष्ट गोप थे 

हरा दिया मुझको उन्होंने। 


मैं उनकी रक्षा न कर सका 

वही रथ और वही बाण हैं 

राजा झुकाते सर थे जिनको 

कृष्ण बिना ये शून्य समान हैं। 


जो पूछो स्वजनों की कुशल तो 

मदिरा पीकर वो भ्रष्ट हो गए 

शापवश और मोहग्रस्त वो 

आपस में लड़कर नष्ट हो गए। 


समझ गए सब कृष्ण की लीला 

शिक्षा को उनकी याद किया जब 

गीता ज्ञान स्मरण हो आया 

शांत चित उनका हो गया तब। 


कृष्ण गए अपने स्वधाम को 

ये सुन युधिष्ठर ने निश्चय किया 

स्वर्गारोहण को चल पड़े तब 

संसार से अपना नाता तोड़ लिया। 


कुंती ने मन में कृष्ण बसाकर 

मुँह मोड़ लिया, मोह माया से 

विदुर जी ने भी छोड़ा संसार को 

शरीर त्याग दिया प्रयाग क्षेत्र में। 


श्री कृष्ण के जाने से ही 

कलयुग भी आ गया पृथ्वी पर 

युधिष्ठर देखें अधर्म और हिंसा का 

बोल बाला हो गया धरती पर। 


परीक्षित को तब दिया राज्य सब 

सन्यास ग्रहण कर वो निकल पड़े 

भीम, अर्जुन और छोटे भाई 

सब उनके पीछे पीछे चले। 


द्रोपदी ने जब ये देखा 

सारे पांडव निरपेक्ष हो गए 

चिंतन करने लगी कृष्ण का 

भक्ति से कृष्ण को वो प्राप्त करें। 


पांडव सब कृष्ण भक्त थे 

उनके पास ही जाएं सब वो 

कृष्ण के रंग में रंग गए सब 

परम गति मिली उन सब को। 


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