श्रीमद्भागवत -११ ;अर्जुन द्वारा अश्व्थामा का मानमर्दन
श्रीमद्भागवत -११ ;अर्जुन द्वारा अश्व्थामा का मानमर्दन


सूत जी कहें फिर शौनक जी से
अब सुनाऊँ परीक्षित की कथा
जन्म और कर्म सब उनका
कैसे उन्हें मोक्ष मिला था।
महाभारत युद्ध में कई वीरों को
वीर गति थी प्राप्त हुई
और भीम के गदा प्रहार से
दुर्योधन की जांघ टूट गयी।
अश्व्थामा ने दुर्योधन के लिए
काटे सिर द्रोपदी पुत्रों के
दुर्योधन को भी अप्रिय लगा ये
जब अश्व्थामा ने उसे भेंट किये।
द्रोपदी के थे आँख में आंसू
अर्जुन उसको सांत्वना दे रहे
अश्व्थामा का सिर मैं काटूँ
द्रोपदी से वो ये थे कह रहे।
कृष्ण को साथ में लेकर अर्जुन
अश्व्थामा के पीछे भागे
अर्जुन को आता देखकर
प्राण जायेंगे,उसको ये लागे।
सोचा उसने अब बचने का
ब्रह्मास्त्र ही एक उपाय
अस्त्र का संधान कर दिया
पर लौटाना उसे ना आये।
तेज से उसके अर्जुन घबरा गया
कहे कृष्ण, कुछ करो उपाय
कृष्ण कहें, यही काट पाए इसे
अर्जुन भी ब्रह्मास्त्र चलाएं।
दोनों टकराये आकाश में
लगा नाश हो पृथ्वी का अभी
प्रभु की अनुमति से अर्जुन ने
लौटा लिया उन दोनों को ही।
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अश्व्थामा को पकड़ लिया और
शिविर ले जाने को बाँध दिया उसे
कृष्ण कहें, जिन्दा न छोडो
पापी ये, मार डालो इसे।
अर्जुन सोचें, गुरु पुत्र ये
इच्छा न हुई, मारूं इसको
बाँध कर ले गए शिविर में
सौंप दिया द्रोपदी को उसको।
पशु की तरह बंधा गुरु पुत्र
मुख नीचे की तरफ झुका था
द्रोपदी कहें छोडो ब्राह्मण को
पुत्र तुम्हारे गुरु द्रोण का।
पुत्रों के लिए जैसे मैं रोती
वैसे रोयेगी इसकी माँ भी
सभी लोग जो खड़े वहां पर
इसमें थी सहमस्ति सबकी।
भीम कहें पर, इस पापी का
उत्तम है वध करना ही
कृष्ण हसें. और कहें ये सबसे
वध न करो पतित ब्राह्मण का भी।
पर अतिताई को मार ही डालो
शास्त्रों का कहता ज्ञान जो
इसी लिए करो कुछ ऐसा
दोनों ही आज्ञा का पालन हो।
प्रभु ह्रदय की बात जान कर
अर्जुन ने तलवार से जख्म दे लिया
मणि जो सिर पर लगी थी उसके
उसे बालों सहित था उखाड लिया।
ब्रह्मतेज से रहित हो गया, तब
शिविर से उसको वो निकालें
अश्व्थामा के साथ जो हुआ
वध सामान है ब्राह्मण के लिए।