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Vijaylaxmi Gupta

Tragedy Classics

4  

Vijaylaxmi Gupta

Tragedy Classics

श्री राम वन गमन

श्री राम वन गमन

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दुखी होके कहते हैं साकेत वासी मेरा राम प्यारा छुटा जा रहा है।

14 वर्ष तप का जीवन बिताने मेरा राम प्यारा चला जा रहा है।


भला ककेयी का भला कैसे होगा निठुर बन के ऐसा जो वरदान मांगा।

गए संग में जब लखन जानकी भी सुन सुन कलेजा फटा जा रहा है।


मेरा राम प्यारा छुटा जा रहा है।

दुखी होके कहतें हैं साकेतवासी मेरा राम प्यारा छुटा जा रहा है।


जुदाई में राजा तड़पते हैं बेसुध कहां राम नैनो का तारा गया है।

मेरे लाल को कोई लाके दिखा दो बिरह से हृदय भी जला जा रहा है।


अधिक वेदना और होगी कदा क्या निकलते नहीं प्राण अटका कहां है ?

राम अपने जीवन का छुटा सहारा अवध का वैभव लूटा जा रहा है।


मेरा राम है प्यारा चला जा रहा है।

दुखी होके कहते हैं साकेत वासी मेरा राम प्यारा छुटा जा रहा है।

संकलित दादी जी के स्मृति पन्नों से


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