श्री कृष्ण के रूप
श्री कृष्ण के रूप
कन्हैया तुम अनादि, तुम्हारे रूप हैं अनंत,
निमिष में करते हो सबका प्रबंध
कभी मुरली-मनोहर
कभी कंस- संहारक
कभी नटखट नंद बालक
कभी विश्व के धारक
कभी राधा संग प्रेम में मग्न
और कभी बिल्कुल निस्संग
कभी रुक्मिणी हरण और
सोलह हजार स्त्रियों का वरण
कभी धुरंधर कूटनीतिज्ञ और द्वारकाधिपति
कभी पांडवों के सखा, दूत,
पुनः अर्जुन के उपदेशक, विराट रूप
यदि गोपियों का वस्त्र चुराया
तो द्रौपदी की लज्जा को वस्त्र ओढ़ाया
अर्जुन के हाथ भीष्म को शर शैय्या दी
पुनः अर्जुन से कह भीष्म को गंगा की धार दी
युधिष्ठिर से छ्द्म मिथ्या बुलवाया
तदुपरांत उन्हीं को राज्य सिंहासन दिलाया
गोपियों के संग रास में रमे रहे,
साथ ही गीता का वैराग्य भी कहते गए
नंद-यशोदा को बाल-लीला दिखाई,
मथुरा पहुँचकर
सभी की सुदबुध बिसराई
मथुरा छोड़ के रणछोड़ कहलाते
और महाभारत में विजय श्री दिलाते
गुरुकुल में सुदामा की चोरी पकड़ी
बाद में उन्हें अकूत संपदा सौंपी ...
विरोधाभासों से भरे हो
परन्तु निरुर्मि सागर से शान्त दिखते हो
सृष्टि के संहारक हो
तुम्हीं जगत कारण, प्रजा पालक हो
नटवर तुम्हारी लीला न्यारी है
प्रत्येक छवि मोहने वाली है।