श्रद्धांजली - सुशांत सिंह राजपूत
श्रद्धांजली - सुशांत सिंह राजपूत
तुझे यूं ज़िंदगी से मुंह मोड़ना नहीं चाहिए था..
इतनी आसानी से मौत को गले लगाना नहीं चाहिए था...
माना कि था तेरी परछाई तुझसे रूठी हुई ..
तकदीर के लकीर भी था हाथों से छूटा हुआ...
मगर तेरा हुनर ही तो तेरा हमसाया था..
फिर नजाने किस बात से तू घबराया था..
कुछ लोगों की बेरुखी से तू क्यूं था परेशान..
बसता था तू लोगों के दिलों में क्या था इस बात से अंजान..
तेरे जाने का सदमा आज भी रूह से उतरता नहीं..
होता क्यूं कभी मेहसूस मुझे शायद तू है बस यहीं कहीं..
कभी मौका मिला नहीं तुझे एक नजर भी निहार सकूं..
पर आज लगता है कोई अपना था जो अब मेरे साथ नहीं।