वक्त का पहिया
वक्त का पहिया
ख्वाब पूरा करने के लिए नौकरी करते हैं..
मगर कमाने के चक्कर में ख्वाब भूल जाते हैं...
अपने लिए और अपनों के लिए कमाते है...
मगर वक्त रेत की तरह फिसलती है और
हम खुद को और अपनों को भूल जाते हैं...
वक्त ने कहा, और थोड़ी देर सब्र कर लेता...
सब्र ने कहा, और थोड़ा वक्त मुझे मिल जाता...
वक्त और सब्र के जंग में इस कदर फंसा है इंसान ,
ना खामोशी बर्दाश्त होती ना हाल सुनाया जाता....
मुस्कुराहट भी गुम सा है,
फिर भी मुस्कुराना पड़ता है...
उलझनों का समंदर है,
"सब ठीक है" फिर भी कहना पड़ता है...
आज वो बचपन याद आया है,
दोस्तों की टोली और उनके संग
आंख मिचौली याद आया है...
सोचा था बचपन की ख्वाहिश,
जवानी में उन हसरतों को पूरा करेंगे...
मगर आज सवाल खुद से किया करते है,
क्या उस बचपन को फिर से हम जी पाएंगे...