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Alka Soni

Tragedy

2  

Alka Soni

Tragedy

◆◆ श्राद्ध ◆◆

◆◆ श्राद्ध ◆◆

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आज बाबू जी को खीर

खाने का मन था,

लेकिन दूध का इंतजाम

हो न पाया।

माँ की भी साड़ी थी,

पुरानी सी हो चली,

तनख्वाह से तुम्हारी

कुछ बच न पाया।

जब तक थे वो ज़िंदा,

तरसते रहे निर्बल दो शरीर,

पाने को साथ तेरा।

टूटे चश्मे से कोशिश,

करती रही देखने की

बूढ़ी आंखे रस्ता तेरा।

आज याद कर उनको,

प्रायश्चित से गल रही है

कमीज़ ये तुम्हारी।

खीर-पूड़ी का भोग 

श्राद्ध का बस एक

वंचना भर है तुम्हारी।


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