शंकर छंद...
शंकर छंद...
मानवता भी रक्षित होगी,रखिए सुविश्वास।
संभल-संभल कर तुम चलना,होना मत निराश।
मानवता भी रक्षित होगी...
लोग अहम् को धर कर सब जन ,हो गए हैं खार।
गुलशन में भी आज लगे हैं,शूल के अंबार।।
जीव कई हैं इस जग में जी,देख कई हजार।
सावन के फिर मेले होंगे,मेघ के उस पार।।
पतझड़ को बस जाने दो तुम,आ रहा मधुमास
मानवता भी रक्षित होगी।