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Sajida Akram

Abstract

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Sajida Akram

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शमां

शमां

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रात गहराई सी है, 

ये शमा भी जलती हुई, 

हर वरक़ यूँही पलटती जाती हूँ।

कुछ ख़ामोशी सी तारी है, 

जैसे वक़्त भी ठहर सा गया है।

जाने क्यूं आज अश्कों को

 रोक ना पा रही हूँ, 

शिद्दत से तेरी याद सता रही है।

 तेरा यूँ छोड कर जाना, 

हमें बेहाल कर गया।  

पापा और बहन, मुझे तन्हा कर 

गया तुम्हारा जाना।


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