शिलालेख
शिलालेख
करीब बीसियों वर्ष पहले
शायद यही बाग है
जिसमें मुलाकात हुई थी
किसी से पहली बार
आज यूं ही वहां
फिर से आना हुआ था
स्वयंभू इतिहासकार बन कर
एक कोने में पड़ा
याचक निगाहों से
आगंतुकों को निहार रहा
जर्जर हो चुकी लकड़ी का बेंच
उस पर लिखा
उपयोग के वास्ते परित्यक्त
उस परित्यकत शब्द के बीच
एक और शब्द
जो स्केच पेन से
शायद लिखा था मैंने ही
धूप बरसात से आहत
हो चुके बेरंग
पर आज भी कुछ कुछ पठनीय पाया
वह था उनका नाम
जो शायद वियोग में
शिला
लेख बन चुका था।
छुआ, टटोला
जहां तक जा सकता था
स्मृति का फ़्लैश बैक किया
कच्ची उम्र के करतूतो को
अश्रुमय आंखों से
एक बार नहीं
कई बार देखा
मैंने महसूस किया
वो समक्ष है मेरे
फिर आहिस्ता किसी ने टोका
ओ मिस्टर ध्यान किधर
मैं इधर
फिर बच्चों के लिए
फ्रूटी खरीदा
ताने सुनते रास्ते भर आया
कल मतलब कल
चश्मा बना लो
वो शिलालेख नहीं
कोई बेशर्म कमीना
लिख गया है
अपनी प्रेयसी का नाम
सार्वजनिक जगहों पर भला
ऐसे कोई लिखता है क्या