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Rajeshwar Mandal

Romance

4  

Rajeshwar Mandal

Romance

शिलालेख

शिलालेख

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367


करीब बीसियों वर्ष पहले

शायद यही बाग है

जिसमें मुलाकात हुई थी

किसी से पहली बार

आज यूं ही वहां

फिर से आना हुआ था

स्वयंभू इतिहासकार बन कर


एक कोने में पड़ा

याचक निगाहों से

आगंतुकों को निहार रहा

जर्जर हो चुकी लकड़ी का बेंच

उस पर लिखा 

उपयोग के वास्ते परित्यक्त 

उस परित्यकत शब्द के बीच

एक और शब्द 

जो स्केच पेन से 

शायद लिखा था मैंने ही


धूप बरसात से आहत

हो चुके बेरंग

पर आज भी कुछ कुछ पठनीय पाया

वह था उनका नाम

जो शायद वियोग में

शिलालेख बन चुका था।


छुआ, टटोला 

जहां तक जा सकता था

स्मृति का फ़्लैश बैक किया

कच्ची उम्र के करतूतो को

अश्रुमय आंखों से

एक बार नहीं 

कई बार देखा

मैंने महसूस किया 

वो समक्ष है मेरे

फिर आहिस्ता किसी ने टोका

ओ मिस्टर ध्यान किधर

मैं इधर


फिर बच्चों के लिए

फ्रूटी खरीदा

ताने सुनते रास्ते भर आया

कल मतलब कल

चश्मा बना लो

वो शिलालेख नहीं

कोई बेशर्म कमीना

लिख गया है 

अपनी प्रेयसी का नाम 

सार्वजनिक जगहों पर भला

ऐसे कोई लिखता है क्या


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