शिक्षक
शिक्षक
टिफिन की घंटी बजती, छात्र-छात्राओं में हुल्लोड़ मची
जायें तो जाएं कहां! अलग कोई कक्ष नहींं
हाथ-पैर ढीले करूं, पलकें बंद करूं भले लैब हीं सही।
शिक्षकों की जात, जिनके मुखरविंद करते बकवास,
विश्व के ज्ञान के यही ठेकेदार ऐसा आभास।
दाल-भात में मूसर बनना जिनका होता अभ्यास।
बड़ी-बड़ी डिग्रियों से लैस, उम्र छिपाने को मेंहदी भरे केश,
मन में संकिर्णता पर बाहर नारी-पुरुष की समानता।
साथ साथ बैठे पुरुष शिक्षकों के शब्दों को परखती,
चूज-चोज-चोजेन को अपमानित समझी,
स्वाधीनता के नाम पर हो गई दलबाजी।
मोल्सटिंग शिक्षक आरोपी पर बनता गया दबाव,
डिग्री एवं सरकारी चाकरी के बैशाखी पर,
नारियों के प्रति स्वार्थी लोलुपता के ढेर पर।
शब्दों को बिगाड़ते सारे पुरुष शिक्षक दण्ड दिलाने को तत्पर,
शिक्षिकाओं ने कर दी जूते-चप्पलों की बरसात,
आरोपी को बचने का न मिला कोई अवसर।
आनन-फानन में सेक्रेटरी-प्रेसिडेन्ट बुलाए गए,
अंग्रेजी शब्द 'चूज-चोज-चोजेन' बतानेवाले बन्दी बना लिए गए।
मैंने तो कुछ भी ग़लत नहीं कहा अड़ गया बन्दी,
दैहिक आकर्षण में डूबे सह शिक्षक हुए साक्ष्य वादी।
सत्य का प्रहार नि:शब्द सघन गहन तमस को भी जिसका अन्दाज नहीं,
अति उदारता के आवेश,"मुझे क्या बोका……. (गाली) समझा"प्रेसिडेंट को आया तैश।
और वातावरण में आई लज्जा,न्याय कक्ष शर्मसार हुई,
क्योंकि निरक्षर कवि ने कहा "समरथ को न होता कोई दोष",
चुंकि जोश में खो जाया करता है मानवीय होश।
सभ्यता के प्रारंभ से बहती आ रही है निर्झर कल-कल निनाद,
शक्तिशाली हीं होता है आबाद, जिसकी लाठी उसकी भैंस विद्वानों का है प्रवाद।
एम ए बी एडों के शस्त्रों से आगे बढ़ रही है नारियां,
स्वाधीनता-समानता की भड़कती चिंगारियां,
अपने विषय का नहीं ज्ञान पर दूसरे का करती आलोचना।
पुरूषों को क्या कहें हर पल नारियों के प्रति पालते वासना,
तभी तो कृत्रिम सूरज के सामने करते हैं दिवाकर की समालोचना।
मारो इसे-पिटो इसे निकाल-बाहर करने की हुई तैयारी,
प्रेसिडेंट के शब्द-ज्ञान से शिक्षिका हारी।
हां तो महोदय-आप कुछ कहेंगे सेक्रेटरी ने ली चुटकी,
निगाहें थम गई सांसें रुक गई अभियुक्त आचार्य पर,
अति शीघ्र नयनों से नैन मिली, आखिर रक्षा करने को बैठा था वाल्मीकि।
कर बद्ध हथेलियां, शिक्षकों के वाक् युद्ध पर विराम लगी,
टस से मस नहीं एक शिक्षक के धैर्य की परीक्षा,
विवेक था जागृत, पुनः एकबार सीता हुई की रक्षा।
आगे क्या कहूं-शिक्षित नकाबों में चारों ओर शैतान दिखे,
दीप जलाने का ढोंग करें तमस की आराधना,
तैलहीन प्रदीप से असंभव है ईश की प्रार्थना।
अट्टहास अदालत में सेक्रेटरी गंभीर होता अधीर,
मूर्ख भी बना सहा अपमान फिर भी बचाया शिक्षक का सम्मान,
बुझे मन से कहा-धन्य हो शिक्षक बनाओ देश की तकदीर।