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Advait Shah

Crime

4  

Advait Shah

Crime

शिकायत

शिकायत

64 mins
596


“जिस दिन एक महिला सड़कों पर मध्यरात्रि में स्वतंत्र रूप से चल पायेगी, उस दिन हम कह पाएंगे कि भारत ने आजादी हासिल की है।“

-महात्मा गाँधी

रात के करीब डेढ बजे थे। कुछ इक्का दुक्का दुकानों को छोड़कर शहर की अधिकतर दुकानों के शटर गिर चुके थे। हर जीव अपने घरौंदे  में सिमट चुका था। सर्द हवा जिस्म पर ऐसी महसूस होती थी कि मानों हवा ना हो कोई तलवार हों। चारों तरफ फैला घना सन्नाटा किसी के भी दिल में दहशत पैदा कर देने के लिए काफी था। ज्यादातर बंद पड़ी हुई और बाकी बची जलती बुझती स्ट्रीट लाइटें शासन द्वारा की गयी व्यवस्थायों का गान शिद्दत से कर रहीं थी।

फिर भी बस स्टैंड पर अभी भी कुछ चहलकदमी बाकी थी। ठेले वाले अभी भी अपना माल बिक जाने की आशा के साथ लालटेन जला कर खड़े थे। कुछ मजबूर यात्री अपनी अपनी बसों के इंतज़ार में इधर उधर टहल रहे थे। जिन यात्रियों की बसें अपने सामान्य समय के मुकाबले ज्यादा देरी से आने वाली थीं वो निराशा की चादर ओढ़े ठण्ड के दबाव से जहाँ जगह मिली वहीं सुकडे हुए बैठे थे।

सोनिया ने ऑटो वाले को पैसे दिए और अपना सामान उठा कर इधर उधर देखा। काफी नजर दौड़ाने के बाद उसे अंग्रेजी में लिखा हुआ धुंधला सा ‘इन्क्वारी’ शब्द नजर आ ही गया। वहीं इन्क्वारी के बिलकुल नीचे हिंदी में ‘पूछताछ केंद्र’ भी लिखा हुआ था तभी सोनिया के फ़ोन की घंटी बजी। उसने अपने कानों में लगे इयर फ़ोन का इस्तेमाल करते हुए फ़ोन उठाया।

“कहाँ पहुंची बेटा?”, फ़ोन के दूसरी तरफ से आने वाली आवाज ने घबराहट भरे स्वर में पूछा।

“जस्ट अभी बस स्टैंड पहुंची हूँ डैड”, सोनिया ने जवाब दिया।

“कब से तेरा फ़ोन लगा रहा हूँ लग ही नहीं रहा था”, सोनिया के डैडी ने बेचैनी के साथ कहा।

“डैड,,, आपको पता है न इस शहर में अकसर नेटवर्क चला जाता है, आप चिंता मत करो मैं पहुँच गयी हूँ”, सोनिया ने लगातार एक स्वर में स्पष्टीकरण दिया।

“चलिए अब बस में बैठकर फ़ोन करती हूँ, बाय”, इतना कहकर सोनिया ने फ़ोन काट दिया।

फ़ोन काटने के बाद सोनिया सीधे पूछताछ केंद्र पर पहुंची। पूछताछ केंद्र के अन्दर रोशनी थोड़ी धुंधली थी, एक तरफ बसों के आने जाने के सामान्य समय की सारणी लगी हुई थी। वहाँ एक कुर्सी भी रखी हुई थी परन्तु कुर्सी पर यात्रियों के प्रश्नों का जवाब देने के लिए कोई भी न था।

“कामचोर कहीं के मुफ्त की तनख्वाह लेते है”, पूछताछ केंद्र पर किसी को ना पाकर सोनिया ने बड़बड़ाते हुए कहा।

“भैया, ये दिल्ली जाने वाली ए-सी बस कब आयेगी?”, सोनिया ने टी स्टाल पर बड़ी लगन से चाय में डालने के लिए अदरक कूट रहे व्यक्ति से पूछा।

अकसर बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर टी स्टॉल वाले लोग पूछताछ केंद्र के सलाहकार से अधिक अनुभवी प्रतीत होते है।

“वो क्या है न बहन जी कि सर्दी और कोहरे की वजह से आजकल सभी बसें लेट चल रहीं है पर म्हारे हिसाब से आधा घंटे में तो आ ही जावेगी, तब तक आपके लिए बढ़िया सी अदरक वाली चाय बना दूँ क्या?”, सिर के चारों तरफ मफलर बांधे हुए व्यक्ति ने जर्दे की वजह से अपने ख़राब हो गए दांतों को दिखाकर मुस्कराते हुए कहा।

“नो थैंक्स! मैं चाय नहीं पीती”, सोनिया ने मुंह बना कर कहा और अपनी बस का इंतज़ार करने लगी।

करीब पैंतीस मिनट इंतज़ार करने के बाद सोनिया की बस आ ही गयी। इस बस के चारों तरफ सामान्य बसों के अपेक्षा ज्यादा बड़े शीशे लगे हुए थे और ये बस सामान्य बसों की तुलना में अधिक साफ़ सुथरी भी दिखाई दे रही थी। इस के सामने वाले शीशे पर लगे बोर्ड पर दिल्ली लिखा हुआ था।

“ये बस दिल्ली जाएगी ना?”, सोनिया ने बस में चढ़ते हुए बस के चालक से पूछा।

“जी मैडम ये बस दिल्ली ही जाएगी”, चालक ने पास में रखी अपनी टोपी को सर पर लगाते हुए जवाब दिया।

“दिल्ली कब तक पहुँच जाती है ये?”, सोनिया ने सबसे आगे की सीट पर बैठे परिचालक से पूछा।

“आजकल कोहरा बहुत है मैडम, करीब सुबह आठ, साढ़े-आठ बजे तक तो पहुँच ही जाएगी”, परिचालक ने चेहरे पर संशय के भाव दिखाते हुए जवाब दिया।

“वैसे इसके दिल्ली पहुँचने का राईट टाइम क्या है?”, सोनिया ने भी संशय के साथ पूछा।

“राईट टाइम का क्या है मैडम, हाँ, अगर ट्रैफिक और कोहरा ना हो तो करीब सुबह साढ़े छ: बजे तक तो पहुँच ही जाती है”, परिचालक ने व्यंगात्मक भाव के साथ जवाब दिया।

“ठीक है। मुझे दिल्ली तक के लिए एक टिकट दे दीजिए”, सोनिया ने परिचालक से कहा।

“और हाँ, जब दिल्ली आ जाये तो मुझे बता देना”, सोनिया ने टिकट लेते हुए आदेशात्मक भाव के साथ कहा।

बस के अन्दर हल्की रोशनी थी। कुछ सीटों को छोड़कर ज्यादातर सीटें घिरी हुयीं थी। यात्री अपनी सीटों पर बैठी हुई मुद्रा में ही नींद के आगोश में थे। यात्रियों के खर्राटों की आवाज बस के अन्दर की शांति में खलल डाल रही थी।

सोनिया अपनी टिकट पर लिखे नंबर के मुताबिक खिड़की वाली सीट पर बैठ गयी और इयर फ़ोन कान में लगाकर संगीत सुनने लगी। करीब पाँच मिनट बाद उसका फोन फिर बजा। स्क्रीन पर प्रदर्शित हो रहे डैड नाम को देखकर उसने फोन उठाया।

“बस मिल गयी क्या, बेटा?”, सोनिया के डैडी ने फिर से बेचनी की साथ पूछा।

“हाँ डैडी, मैं बस में बैठ गयी हूँ और सुबह साढ़े आठ बजे तक पहुँच जाऊंगी”, सोनिया ने जवाब दिया।

“पहुँचने से पहले कॉल कर देना”, सोनिया के डैडी ने कुछ राहत भरी आवाज के साथ कहा।

“ओके डैड, गुड नाईट”, ऐसा कहकर सोनिया ने फ़ोन काट दिया। सोनिया संगीत सुनने के साथ साथ अपने दोस्तों से मोबाइल पर चैटिंग भी कर रही थी और हमेशा की तरह चैटिंग करते करते कब उसे नींद आ गयी पता ही नहीं चला।

“मैडम उठिए दिल्ली आने वाला है”, परिचालक ने करीब करीब चिल्लाते हुए कहा।

“क्या टाइम हुआ है?”, सोनिया ने आंखें मलते हुए पूछा।

“साढ़े छ: बज गए हैं मैडम”, परिचालक ने जवाब दिया।

“क्या! पर तुमने तो कहा था कि बस साढ़े आठ बजे तक दिल्ली पहुंचेगी”, सोनिया ने संशय और क्रोध के मिले जुले भाव के साथ पूछा।

“हाँ बोला था मैडम मगर रात को कोहरा ज्यादा नहीं पड़ा और ट्रैफिक भी नहीं मिला इसलिए बस अपने सही समय पर चल रही है”, परिचालक ने स्पष्ट किया।

“ठीक है। मुझे बस स्टैंड से पहले वाले फ्लाई ओवर के पास उतार देना”, सोनिया ने कुछ सोचते हुए कहा।

चालक ने ठीक फ्लाई ओवर पुल के पास बने छोटे से बस स्टाप पर सोनिया को उतार दिया। आस पास हल्की धुंध थी। सुबह के सात बजे चुके थे मगर ठण्ड होने के कारण आस पास बहुत कम लोग ही नजर आ रहे थे। अभी आसमान में सूरज नजर नहीं आया था परन्तु दिन का आगाज तो हो चुका था।

सोनिया ने उतरते ही फ़ोन पर संगीत चालू करके इअर फोन को अपने दोनों कानों में लगा लिया और सड़क का बायाँ किनारा पकड़कर अपनी पहियों वाली अटैची को खींचते हुए लाल बत्ती की तरफ बढने लगी। करीब 300 कदम चलने के बाद वो लाल बत्ती पर पहुँच गयी उसे पुल के नीचे से होते हुए पुल की दायीं तरफ जाना था मगर बीच में लाल बत्ती हो जाने के कारण गाड़ियों का छोटा सा जाम लगा हुआ था जो उसके रास्ते में आ रहा था तो वो सड़क के किनारे खड़े होकर जाम के हटने का इंतज़ार करने लगी लगी।

तभी एक काले रंग की ऊँची कार उसके सामने आकर रुकी। गाड़ी का दरवाजा खोलकर एक व्यक्ति बड़ी फुर्ती से उसमें से उतरा। उस व्यक्ति ने अपनी मजबूत बाहोँ की मदद से सोनिया का हाथ खींचा और उसे गाड़ी में खींचकर ले जाने लगा।

अचानक से अपने साथ हुई इस घटना से सोनिया सकपका गयी और खुद को संभाल नहीं पाई। उसकी सांसें रुक सी गयीं और दिल मानों हलक तक आ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे और वो व्यक्ति पूरी ताकत से उसे गाड़ी के अन्दर खींचे जा रहा था। सोनिया ने थोडा साहस दिखाकर खुद को सँभाला और उस व्यक्ति से खुद को छुड़ाने की कोशिश शुरू की परन्तु उस व्यक्ति की ताकत के आगे वो कोशिश उसे नाकाम साबित होती हुई लगने लगी। पिछले महीने हाईवे पर हुए एक लड़की के अपहरण, बलात्कार और बेरहमी से की गयी हत्या की खबर की याद ने उसके शरीर को कंपा दिया।

सोनिया को वो कार एक अँधेरी गुफा जैसी दिखने लगी जिसमें एक दानव उसे खींचने की पुरजोर कोशिश कर रहा था। उसका आधा शरीर गाड़ी में था और आधा गाड़ी के बाहर अब उसकी रही सही हिम्मत भी जवाब देने लगी थी।

करीब तीन साल पहले..

ये कमरा कांच की खिड़की से आने वाली प्राकृतिक व सफ़ेद ट्यूब लाइटों की कृत्रिम रोशनी से भरा हुआ था। लकड़ी की एक बड़ी चमकदार मेज बड़े ही सलीके के साथ इस कमरे के बीचों बीच रखी हुई थी। हालाँकि इस कक्ष में 20 से 30 लोगों के लायक जगह थी फिर भी आज यहाँ सिर्फ 5 लोगों के बैठने की ही व्यवस्था की गयी थी 4 लोग मेज की एक तरफ बैठ सकते थे और एक व्यक्ति उन लोगों के सामने मेज की दूसरी तरफ।

मेज के उस तरफ तीन अन्य लोगों के साथ बैठी हुई टीना दुग्गल ने मेज पर रखी स्टील की घंटी को बजाते हुए ऊँची आवाज में ‘नेक्स्ट’ बोला। टीना 40 से 45 साल की एक गड्वाली महिला थीं जो कि आज एक मर्दाना कोट पहने हुए तथा चेहरे पर चटकीले शृंगार के साथ इस कमरे में बैठी हुई थी।

‘नेक्स्ट’ शब्द सुनकर दरवाजे पर खड़े चपरासी ने पास में खड़ी हुई सलवार सूट पहनी एक लम्बे कद की लड़की जो कि हाथ में एक फाइल लिए खड़ी हुई थी को अन्दर जाने का इशारा किया। इस लड़की के चेहरे पर बिना किसी शृंगार के भी एक अलग ही आकर्षण था और उसकी चाल में भी गजब का आत्मविश्वास नजर आता था।

“क्या मैं अन्दर आ सकती हूँ?”, उस लकड़ी ने दरवाजे पर खड़े होकर हल्के से खुले हुए पर्दों के पीछे से बड़े ही सौम्य भाव के साथ पूछा।

“यस, अन्दर आइये” टीना ने उसको अनुमति दी।

“क्या मैं बैठ सकती हूँ?”, उस लड़की ने फिर मुस्कराते हुए अनुरोध भरे भाव से पूछा।

“कृपया बैठिये”, टीना ने भी अनुरोध भरे भाव के साथ कहा।

उस लड़की ने अपनी फाइल को मेज पर रखा और मेज के सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई।

“कृपया अपने बारे में कुछ बताइए”, टीना ने मेज पर रखी फाइल को उठाया और ज्यादा समय न लेते हुए साक्षात्कार शुरू किया।

“मेरा नाम अंतिमा श्रीवास्तव है और मैं उत्तर प्रदेश राज्य के बरेली जिले के एक मध्यम वर्गीय परिवार से आती हूँ। मेरे पिताजी एक बहुत ही उत्तम दर्जे के दरजी हैं और मेरी माँ एक पूर्ण घरेलू महिला हैं। जहाँ तक मेरी शिक्षा का सवाल है मैंने अपनी प्राथमिक तथा माध्यमिक शिक्षा उत्तर प्रदेश बोर्ड से पूरी की है और यहाँ इस कॉलेज में कम्पयूटर विज्ञान में इंजीनियरिंग की शिक्षा के अंतिम वर्ष में हूँ”, अंतिमा ने चेहरे पर गर्व के भाव के साथ बताया।

“सिर्फ एक व्यक्ति के तौर पर अपने बारे में कुछ बताइये”, टीना ने फिर से पूछा।

“मैं एक ऐसी व्यक्ति हूँ जो कल्पना के सागर में डूब कर नए विचारों को खोजता है जिनसे कि हमारे आस पास के समाज और वातावरण में फैली समस्याओं को सुलझाया जा सके और संसार जीने के लिए थोड़ा और बेहतर बन सके”, अंतिमा ने चेहरे पर मुसकुराहट और गंभीरता के मिले जुले भाव के साथ जवाब दिया।

“दल-निष्‍ठा यानि की टीम स्प्रिट और नेतृत्व के बारे में आपके क्या विचार हैं?” टीना ने गंभीरता के साथ पूछा।

“दल-निष्‍ठा के बारे में मैं एक ही बात कहूँगी कि अकेले तो हम कुछ भी नहीं और जहाँ तक नेतृत्व का सवाल है इस दुनिया में हर व्यक्ति के अन्दर कुछ न कुछ अनोखा होता है और एक अच्छे नेता का काम है कि वो अपने दल के हर सदस्य की उस अनोखी प्रतिभा को खोजकर उसे प्रोत्साहित करते हुए उसका प्रयोग संस्थान के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए करे”, अंतिमा ने आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया।

“आप कंप्यूटर विज्ञान से इंजीनियरिंग कर रहीं है तो सॉफ्टवेयर शब्द को कम से कम शब्दों में परिभाषित कीजिये”, टीना के पास ही बैठे व्यक्ति ने अंतिमा से पूछा।

“कंप्यूटर की भाषा में तार्किक निर्देशों का इस्तेमाल करते हुए किसी समस्या विशेष या एक से अधिक समस्या का समाधान”, अंतिमा ने कम से कम शब्दों में जवाब दिया।

इस साक्षात्कार से पहले हुई लिखित परीक्षा, वाद विवाद परीक्षा और इस साक्षात्कार के दौरान हुए कई और सवाल तथा बेबाकी से दिए गए उनके जवाबों के बाद अंतिमा को सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर इस कम्पनी में नौकरी के लिए चुन लिया गया। कम्पनी में शामिल होने की तिथि कॉलेज की अंतिम परीक्षा के परिणामों के आने के एक महीने बाद की रखी गयी।

सोनिया आज खुश थी। उसका दाखिला एक अच्छे कॉलेज में इंजीनियरिंग कोर्स की सिविल ब्रांच में जो हो गया था परन्तु इस खुशी में थोडा दुःख भी छुपा हुआ था क्योंकि ये कॉलेज शहर से दूर दूसरे शहर में जो था।

“मैंने बड़ी मुश्किल से तुम्हारा दाखिला उस कॉलेज में कराया है और तुम दुःखी हो”, सोनिया के डैडी ने उसे समझाते हुए कहा।

“थैंक्स डैड”, सोनिया ने बड़े हल्के स्वर में कहा।

“अरे तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारा दाखिला बेकार की किसी लिखित परीक्षा और साक्षात्कार की औपचारिकता के बिना एक बड़े कॉलेज में हो गया”, सोनिया के डैडी ने उसे फिर समझाया।

“ह्म्म्म, आप सही कह रहे हैं डैड”, सोनिया ने सर को हिलाते हुआ कहा।

“चलो अब जल्दी से जाने की तैयारी शुरू कर दो, पंद्रह दिन बाद से तुम्हारे पहले सेमेस्टर की कक्षा शुरू होनी हैं। मेरे मित्र जो कि कॉलेज के डायरेक्टर हैं उन्होंने मुझे सुनिश्चित किया है कि वहां तुम्हें किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी। शिक्षक से लेकर वार्डन तक हर कोई तुम्हारा पूरा ख्याल रखेगा”, सोनिया के डैडी ने उसे यकीन दिलाया।

पक्षपात समाज में एक बड़ा ही हास्यप्रद शब्द है आप अकसर पाएंगे कि वो लोग जो इसके खिलाफ दिखते है उनमें से अधिकतर इसका प्रदर्शन भी सबसे पहले करते हैं। कहते है अगर ये जानना हो कि किसी व्यक्ति के चुनाव में कितना भाई-भतीजावाद हुआ है तो उस व्यक्ति की क्षमता से उस व्यक्ति के पिता या माता की रसूख को विभाजित कर दीजिये आपको उत्तर मिल जायेगा।

“सब तैयारी हो गयी है न बेटा? कुछ भूल मत जाना”, अंतिमा के पिताजी ने पूछा। “हाँ पापा सब रख लिया है आप बिलकुल चिंता मत करो”, अंतिमा ने पापा को विश्वास दिलाते हुए कहा।

तभी दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई।

“क्या हाल है श्रीवास्तवजी?”, पड़ोस वाले शर्माजी ने घर में प्रवेश करते हुए अंतिमा के पिताजी से पूछा। “सब कुशल मंगल है, आप बताइये सुबह सुबह कैसे दर्शन दिए?”, अंतिमा के पिताजी ने मुस्कराते हुए पूछा।

“अरे कुछ विशेष नहीं, इधर से गुजर रहा था तो सोचा मिलता चलूँ। अरे बेटा अंतिमा, कहीं जा रही हो क्या?”, शर्माजी ने अचंभित होने का नाटक करते हुए पूछा

“शर्माजी, आप तो भूल गए मैंने परसों ही तो आपको बताया था कि अंतिमा को दिल्ली की एक कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर नौकरी मिल गयी है”, अंतिमा के पिताजी ने कहा।

“अरे हाँ, मैं तो भूल ही गया था”, शर्माजी ने चेहरे पर भूल जाने के नकली भाव को लाते हुए कहा।

“चाचाजी, आप बैठिये में आपके लिए चाय लेकर आती हूँ”, अंतिमा ने रसोई की तरफ जाते हुए आग्रह किया।

अकसर किसी ना किसी की चुगली करते रहने वाले शर्माजी आज चुप बैठे हुए थे। कुछ देर के बाद अंतिमा भी चाय-नाश्ता लेकर आ गयी।

“लीजिये चाचाजी चाय पीजिये”, अंतिमा ने चाय की ट्रे मेज पर रखते हुए कहा।

“सही बताएं श्रीवास्तवजी, हमें तो ये सॉफ्टवेयर इंजिनियर की नौकरी लड़कियों के लिए जमती ही नहीं है”, शर्माजी ने चाय की चुस्की लेते हुए बोलना शुरू करा।

“एक तो इस नौकरी के लिए अपना शहर छोड़ कर बड़े शहर जाओ और बड़े शहर में किसी का क्या भरोसा लड़की कोई ऊंच नीच कर बैठे तो”, शर्माजी ने गंभीरता दिखाते हुए कहा।

“और काम भी क्या कि बस एक डिब्बे के सामने बैठ कर पूरे दिन किट पिट करते रहो, मेरा मानना तो ये है श्रीवास्तवजी कि ये तकनीकी काम लड़कियों के लिए बने ही नहीं हैं। लडकियों के लिए तो टीचर और बैंक की नौकरी ही सबसे उत्तम है”, शर्माजी ने चाय के कप के साथ साथ अपनी राय भी रख दी।

“चाचाजी, हम इतिहास से जुड़ी एक बात आपसे पूछें?”, अंतिमा ने बड़ी शालीनता के साथ शर्माजी से पूछा, “हाँ, हाँ पूछो बेटा”, शर्माजी ने उत्सुकता के साथ कहा।

“जैसा कि आप इतने सालों से स्कूल में इतिहास पढ़ा रहे है और इतिहास के इतने अच्छे जानकार भी हैं तो कृपया आप बताएंगे कि दुनिया के पहले कंप्यूटर प्रोग्राम की रचना किसने की थी?”, अंतिमा ने मुस्कराते हुए पूछा।

शर्माजी को तो जैसे काटो तो खून नहीं कुछ देर शांत रहने के बाद शर्माजी ने कहा कि वो अगले दिन बताएंगे।

“कल तो मैं चली जाऊंगी, इसलिए मैं आज ही आपके साथ ये जानकारी साझा कर देती हूँ। उनका नाम ऐडा लवलेस था। उन्होंने सन 1842 में दुनिया का पहला कंप्यूटर प्रोग्राम लिखा और बाद में उन्हीं के सिद्धांत से प्रेरणा लेकर आगे के आधुनिक कंप्यूटर प्रोग्राम लिखे गए और हाँ वो एक गणितज्ञ होने के साथ के साथ एक महिला भी थीं”, अंतिमा ने इस जानकारी से शर्माजी की सोच को अपडेट करने की कोशिश की।

अंतिमा का के.एस.टी प्राइवेट लिमिटेड यानी कि कटारिया सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजीस में काम का आज पहला दिन था। टीना ने एच.आर. यानी कि मानव संसाधन विभाग की और से उसका गरम जोशी से स्वागत किया और उसे उसके बैठने का स्थान दिखाया जो कि भवन के कोने में लगीं कई सारी मेजें और कुर्सियों में से एक मेज और कुर्सी थी तथा जिस पर एक आधुनिक कंप्यूटर रखा हुआ था। उस मेज के नीचे एक कूड़ेदान और एक सामान रखने की छोटी से अलमारी भी थी जो कि तीन दराजों में बंटी हुई थी पर वो खुश थी क्योंकि उसे अपना वास्तविक हुनर तो उस कंप्यूटर पर ही दिखाना था।

के.एस.टी का संस्थापन करीब 20 साल पहले श्रीमान उमेश कटारिया के पिताजी ने किया था और उनके देहांत के बाद इस कंपनी का संचालन वो अपनी माँ श्रीमती संगीता कटारिया की मदद से किया करते थे। कहने को तो वो अपने उधोग की एक नामी कंपनी थी जिसके ज्यादातर ग्राहक सरकारी विभाग या सरकारी संस्थान हुआ करते थे और सरकार के साथ कैसे काम करते है ये कला उमेश कटारिया को अच्छी तरह आती थी इन सबके बावजूद के.एस.टी एक लाला कम्पनी के श्रेणी में आती थी।

कार्य-संस्कृति और एक कर्मचारी के नजरिये से देखें तो दो तरह की निजी कम्पनियां पायी जाती है। एक लाला कम्पनी और एक पेशेवर कम्पनी। अकसर वो निजी संस्थान–उत्तरी भारत में–लाला कम्पनी कहलाए जाते है जिसका संस्थापन किसी एक व्यक्ति या उसके परिवार ने किया होता है और वही लोग इसका संचालन भी कर रहे होते हैं। आप उन्हें ‘परिवार के स्वामित्व वाले व्यवसाय’ भी कह सकते हैं।

इन कम्पनियों की मुख्य विशेषता ये होती है कि यहाँ निर्णय लेने की शक्ति किसी एक व्यक्ति, परिवार और उनके कुछ करीबी लोगों के हाथों में केंद्रित होती है। यहाँ कर्मचारी अपने कार्य-समय का ज्यादातर उपयोग संस्थान की प्रगति में कम बल्कि मालिक को प्रभावित करने के लिए ज्यादा करते हैं। यहाँ निचले स्तर पर सशक्तिकरण को हतोत्साहित किया जाता है और निचले स्तरों से आने वाले नए विचारों को विरले ही स्वीकार किया जाता है। इस तरह के निजी संस्थानों में नियोक्ता और कर्मचारी का रिश्ता साझेदारी और सहयोग का कम बल्कि एक मालिक और नौकर का ज्यादा होता है।

“आपको टीना मैडम ने कांफ्रेंस रूम में बुलाया है”, चपरासी ने अंतिमा को सूचित किया।

“ठीक है। मैं आती हूँ”, अंतिमा ने अपनी कुर्सी से उठते हुए कहा।

कांफ्रेंस कक्ष में एक लम्बी मेज के इर्दगिर्द लगी करीब 15 कुर्सियों पर विभिन्न लोग बैठे हुए थे जिनमें से एक टीना भी थी।

“बैठो अंतिमा, कैसा लग रहा है हमारी कंपनी में?”, टीना ने मुस्कराते हुए पूछा।

“बहुत अच्छा”, अंतिमा ने जवाब दिया।

“आज, मैं तुम्हारा परिचय कंपनी के महत्वपूर्ण लोगों से कराना चाहती हूँ”, टीना ने कहा।

“इनसे मिलो ये हैं श्रीमान संदीप जो कि हमारी कंपनी के सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट विभाग के मैनेजर हैं और आज से तुम इनको ही रिपोर्ट करोगी”, टीना ने अपने नजदीक बैठे व्यक्ति से अंतिमा का परिचय कराया।

“हेलो, सर”, अंतिमा ने मुस्कराते हुए उसका अभिवादन किया।

संदीप एक कम बोलने वाला अंतर्मुखी व्यक्ति था जो कि करीब तीन वर्ष से इस संस्थान में कार्यरत था।

विभिन्न विभागों के अन्य सहकर्मियों से परिचय कराने के बाद अंत में टीना ने अंतिमा का परिचय शम्भू से कराया। शम्भू को कंपनी में लोग शम्भूजी कहकर बुलाते थे और उसका कारण उनका पद नहीं बल्कि उनकी उम्र और इस कंपनी का सबसे पुराना कर्मचारी होना था। शम्भू ने कंपनी में हर तरह का समय देखा था और हर कर्मचारी के व्यक्तित्व और चरित्र को गहराई से समझता था परन्तु अपनी सामान्य शैक्षणिक योग्यता और चापलूसी की कला न जानने के कारण वो सालों से उसी पद से पर था।

शम्भू कंपनी में एक क्लर्क के रूप में कार्य करता था। कंपनी में उसका काम रिकॉर्ड, फाइल, और अन्य जरुरी कागजात का रख रखाव और कुछ नियमित प्रशासनिक कार्य करना था परतु कंपनी में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं था जिसे उसकी जरुरत न पड़ती हो

“नमस्ते मैडम!”, शम्भू ने अंतिमा के कुछ बोलने से पहले ही हाथ जोड़ कर उसका अभिवादन किया।

तभी कांफ्रेंस कक्ष का दरवाजा खुला और एक छोटे कद के व्यक्ति ने कमरे में प्रवेश किया। उस व्यक्ति को देखकर सभी लोग अपनी कुर्सियों से ऐसे खड़े हो गए जैसे किसी कक्षा में बच्चे अध्यापक को देखकर हो जाते हैं और सभी लोगों ने एक ही आवाज में उसका व्यक्ति का अभिवादन ‘गुड मोर्निंग सर’ कह कर करा। अंतिमा भी अन्य लोगों को देखकर अपनी कुर्सी से खड़ी हो गयी।

परन्तु अंतिमा को ये देखकर ज्यादा आश्चर्य हुआ कि मेज के किनारे के तरफ बैठे हुए कर्मचारी जिसका नाम रुचिर लागू था, ने कमरे में ढेर सारी खाली कुर्सियां होने के बावजूद अपनी कुर्सी उस छोटे कद के व्यक्ति को बैठने के लिए दे दी। रुचिर लागू की पत्नी दीप्ति भी इसी कंपनी में ही एक कार्यकर्ता के तौर पर काम करती थी।

उस छोटे कद के व्यक्ति का नाम सुजॉय दास था जोकि एक अधेड़ उम्र का बंगाली आदमी था और कंपनी में जनरल मैनेजर के पद पर होते हुए टेक्नोलॉजी और सेल्स विभाग का नेतृत्व करता था। दास ने एक अजीब सी मुस्कान के साथ अंतिमा से हाथ मिलाया और अंतिमा ने भी मुसकुराकर उसका अभिवादन किया।

आज कंपनी में अंतिमा का पहला सोमवार था। नया दिन था। अंतिमा ने बड़ी उत्सुकता से संदीप के साथ अपने काम को गहराई से समझने के लिए काफी चर्चा की थी।

“इस फाइल में क्लाइंट की जरूरत और प्रोजेक्ट की पूरी डिटेल है तुम इसे अच्छे से समझ लो और फिर भी अगर कुछ जानना हो कभी भी मुझसे पूछ सकती हो। इस प्रोजेक्ट से जुड़े किसी भी कागजात की कॉपी तुम शम्भू से ले सकती हो”, संदीप ने अंतिमा को प्रोजेक्ट फाइल देते हुए कहा।

“थैंक यू सर!”, अंतिमा ने संदीप का औपचारिक रूप से धन्यवाद किया।

तभी संदीप की मेज पर रखे फ़ोन की घंटी बजी और संदीप ने फ़ोन उठाया।

“जी अभी आया सर”, इतना कहकर संदीप ने फ़ोन रख दिया।

“तुम इस फाइल को पढ़ो। मैं अभी आता हूँ”, संदीप ने हड़बड़ाते हुए कहा और तेजी से वहां से चला गया।

थोड़ी देर बाद टीना ने अंतिमा को एक कमरे में बुलाया। संदीप भी वहां था।

टीना ने अंतिमा को कुछ कागजात दिए जो कि किसी अनुबंध से सम्बंधित लगते थे।

“अंतिमा ये एक एम्प्लोयीमेंट बांड है और ज्यादा कुछ नहीं, इसे अच्छे से पढ़ लो”, टीना ने वो कागजात अंतिमा को देते हुए कहा।

“इसकी क्या आवश्यकता है?”, अंतिमा ने सीधे पूछा।

“देखो अंतिमा, हमारी कंपनी सभी कर्मचारियों के सम्पूर्ण व्यक्तिव और कौशल विकास में विश्वास करती है जिसके लिए हम अपने सभी कर्मचारियों के प्रशिक्षण पर बहुत खर्चा करते हैं बल्कि ये कहो कि इन्वेस्टमेंट करते है और इसलिए कंपनी पालिसी के अनुसार हम अपने सभी नवीन कर्मचारियों से इस बांड पर हस्ताक्षर करवाते हैं”, टीना ने अंतिमा को समझाया।

अंतिमा ने उस अनुबंध दस्तावेज को गौर से पढ़ा।

“इस अनुबंध के मुताबिक तो मैं दो साल से पहले कंपनी को नहीं छोड़ सकती और अगर दो साल से पहले मैं कंपनी को छोडती हूँ तो मुझे कंपनी के खाते में 3 लाख रुपये चुकाने होंगे परन्तु कंपनी कभी भी एक महीने का नोटिस देकर मुझे निकाल सकती है”, अंतिमा ने चेहरे डर के भाव के साथ कहा।

“ओह अंतिमा, तुम तो कुछ ज्यादा ही सोचने लग गयी, ऐसा कुछ नहीं होता है, यहाँ पर सभी कर्मचारियों ने इस बांड पर दस्तखत किया है चाहो तो तुम संदीप से पूछ लो”, टीना ने संदीप की तरफ देखते हुए कहा।

“परन्तु कॉलेज में मेरे चुनाव के समय तो ऐसा कुछ भी नहीं बताया गया था”, अंतिमा ने टोकते हुए संदेह के साथ पूछा।

“वो मैं उस समय तुम्हें बताना भूल गयी थी”, टीना ने अंतिमा से नजरें बचाते हुए कहा।

वहां कुछ समय शांति बनी रही उसके बाद टीना ने अंतिमा के हाथ पर हाथ रखकर उसे समझाना शुरू किया।

“देखो अंतिमा तुम एक फ्रेशर हो और अपने कैरिएर की शुरुआत कर रही हो तो इस समय तुम्हें सीखने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। इस बांड से कुछ फर्क नहीं पड़ता। व्यक्तिगत तौर पर मैं तुम्हें सलाह दूंगी कि तुम्हें अपनी पहली नौकरी में कम से कम दो साल तो काम करना ही चाहिए मुझे ही देख लो मुझे यहाँ दस साल हो गए हैं। ज्यादातर लोग यहाँ बिना किसी परेशानी के सालों से काम कर रहे हैं”, टीना ने चेहरे पर एक बनावटी सी मुस्कान के साथ कहा।

कुछ समय सोचने के बाद अंतिमा ने उस अनुबंध पर हस्ताक्षर कर दिए।

कहते है एक कूटनीतिक व्यक्ति वो होता है जो आपको नर्क में जाने का सुझाव भी कुछ इस तरह से देगा कि वास्तव में आप उस रास्ते की तरफ जाने पर विचार करने लगेंगे।

अंतिमा को के.एस.टी में काम करते हुए करीब आठ महीने ही पूरे हुए थे फिर भी अपनी रचनात्मकता, अपने ज्ञान, कार्य के प्रति लगन और मृदुभाषिता के कारण उसने उस सरकारी संस्था के प्रतिनिधियों से काफी प्रशंसा प्राप्त की थी जिनके कई सारे सॉफ्टवेयर प्रोजेक्ट को अंतिमा ने समय सीमा के अन्दर पूरा कर लिया था। क्लाइंट की प्रशंसा के अलावा अपने मददगार और मिलनसार स्वभाव के कारण उसने कंपनी के अधिकतर सहकर्मियों का भरोसा और दिल जीता था कम से कम अपने बराबर के और निचले तबके के सह कर्मचारियों का।

“क्या हुआ सरजी?, मुंह कैसे उतरा हुआ है?”, शम्भू ने दो महीने पहले ही कंपनी में सेल्स विभाग में आये अतुल से पूछा।

“कुछ नहीं, शम्भू जी, अगले हफ्ते मेरी सगाई है तो मैं दास सर के पास तीन दिन की छुट्टी मांगने गया था पर उन्होंने मेरी छुट्टी ये कहकर न मंजूर कर दी कि व्यापर में भावनाएं और बहाने नहीं काम की जरूरत होती है।

“यहाँ ऐसा ही होता है सरजी, बड़े लोग कहते है कि धंधे में जज्बात नहीं होते पर जज्बातों का धंधा तो हर कोई कर रहा है। क्रीम से लेकर कार तक सब कुछ इंसान के जज्बातों से जोड़कर बेचा जा रहा है फिर किसने बोला की धंधे में जज्बात नहीं होते”, शम्भू ने अफ़सोस जताते हुए कहा और वो बेचारा अफ़सोस जताने के अलावा और कर भी क्या सकता था।

“सगाई के लिए आपको बधाई पर मैं आपको एक राज की बात बताता हूँ आपकी छुट्टी काम की वजह से नहीं बल्कि आपकी नयी शर्ट की वजह से न मंजूर की गयी है”, शम्भू ने फुसफुसाकर अतुल को बताया।

“क्या चल रहा है?, दास ने अंतिमा की सीट पर आकार पूछा, ये बड़ी अजीब बात थी कि अपने केबिन में आने पर अपने से निचले कर्मचारियों को बैठने की भी न पूछने वाला व्यक्ति अकसर अंतिमा की सीट पर आकर बात करता था।

“सब कुछ बढ़िया चल रहा है सर, बस क्लाइंट के लिए प्रोजेक्ट के फाइनल डाक्यूमेंट्स बना रही हूँ”, अंतिमा ने अपनी सीट से उठकर दास का अभिवादन करते हुए कहा।

दास ने ज्यादा समय न गंवाते हुए हर बार की तरह अपनी कड़क आवाज को थोडा धीमा करते वही सवाल पूछा जो कि वो पिछले 8 महीनों से हर प्रोजेक्ट के पूरा होने पर अंतिमा से पूछता था।

“प्रोजेक्ट तो अच्छे से पूरा हो गया पर कॉफ़ी पिलाने कब ले चलोगी हमें?”, दास ने आँखों में अजीब सी चमक लिए पूछा।

परन्तु अंतिमा ने हर बार की तरह इस बार भी उसकी बात को मजाक समझ कर मुस्करा कर टाल दिया।

शाम से रात हो चुकी थी करीब 9 बजे थे। ज्यादातर लोग ऑफिस से जा चुके थे। दास अपनी केबिन में बैठा था। उसके ठीक पास रुचिर लागू और सामने की तरफ केबिन के गेट के पास सेल्स विभाग और सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट विभाग के कुछ कर्मचारी खड़े थे जो कि ऑफिस में 9 से 6 बजे के ऑफिस कार्यकाल के बाद भी इतनी देर तक सिर्फ इसलिए उपस्थित थे क्योंकि दास ऑफिस में रुका हुआ था और दास सिर्फ इसलिए बैठा हुआ था क्योंकि उमेश कटारिया आज किसी काम की वजह से अभी तक ऑफिस में थे।

उमेश कटारिया विरले ही कभी निचले कर्मचारियों से सीधा संवाद करता था। वो सिर्फ दास से ही हर काम की जानकारी लेता था। उसे कभी पता नहीं होता था कि दास अपने निचले कर्मचारियों के लिए किस तरह के फैसले लेता है और उनसे किस तरह का व्यवहार करता है।

किसी भी एक संस्थान को स्थिर रूप से चलाने के लिए पदानुक्रम होना स्वाभाविक है परन्तु इतिहास गवाह है जब जब किसी देश के राजा, किसी संस्थान के प्रधान मुखिया या मालिक ने अंध रूप से मध्य प्रबंधन के लोगों पर विश्वास किया है तो परिणाम घातक साबित हुए हैं।

दास कुटिल मुस्कान के साथ अतुल को समझा रहा था कि सेल्स साईकल यानि कि विक्रय चक्र बिलकुल मनुष्य के प्रजनन चक्र की तरह होता है।

दास अकसर हर वस्तु और सिद्धांत को मनुष्य की यौन प्रकियाओं से जोड़ने की अतार्किक कोशिश करता रहता था और इसे मन ही मन वो अपनी एक विशेष प्रतिभा भी मानता था।

“क्या बात है सर मैं तो कायल हो गया आपके ज्ञान का, आपके हर सिधान्त पर तो एक किताब लिखी जा सकती है”, रुचिर ने हल्की सी ताली बजाते हुए अंदाज में कहा। सामने खड़े अन्य लोगों ने भी ताली बजायी।

ये गप्प बाजी मनुष्य के प्रजनन चक्र और यौन प्रक्रियाओं से होते हुए कब महिलायों की कमर के नाप के विषय तक पहुँच गयी पता ही नहीं चला और बाद में इस गप्प बाजी का स्तर बढ कर इतना घटिया हो गया कि रुचिर से उसकी पत्नी की कमर का नाप एक बड़े ही कूटनीतिक अंदाज में पूछ लिया गया और रुचिर चाहकर भी कुछ न कह सका बस अपने दाँत दिखाकर चुप हो गया।

वैसे दास की चापलूसी करने वाले कर्मचारी खुद भी कुछ कम नहीं थे वो भी यदा कदा एक दूसरे को दास के पालतू कुत्ते की संज्ञा देते रहते थे पर वो गलत थे क्योंकि उन्हें ये नहीं पता होता था कि एक शुभचिंतक और चापलूस व्यक्ति के बीच में वही अंतर होता है जो एक कुत्ते और एक भेडिये के बीच में होता है।

“बाय ऋतु! शाम को मिलते हैं”, अंतिमा ने अपने कमरे से ऑफिस के लिए निकलते हुए कहा। “अगर मैं शाम तक वापस आ गयी तो”, ऋतु ने चेहरे पर एक शरारती मुस्कान के साथ कहा।

इस नए शहर में अंतिमा ने एक होस्टल में पेइंग गेस्ट के रूप में रहना शुरू किया था। इस होस्टल में ऋतु और अंतिमा एक ही कमरा साझा करते थे। अंतिमा की मुलाकात ऋतु से इसी होस्टल में हुई थी और दोनों एक दूसरे से काफी अच्छी तरह घुल मिल गयीं थी।

ऋतु एक न्यूज़ चैनल में एक संवाददाता के रूप में करीब चार साल से काम करते हुए अपने कर्रिएर में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कर रही थी।

“गुड मोर्निंग बरखा”, अंतिमा ने सुबह 8:30 बजे का समय दिखा रही बायोमेट्रिक मशीन पर हाज़िरी लगते हुए स्वागत अधिकारी यानि की रिसेप्शनिस्ट बरखा से कहा।

“गुड मोर्निंग अंतिमा, कल तुम ऑफिस से जल्दी चली गयीं थी क्या?” बरखा ने थोड़ी घबराहट के साथ पूछा।

“नहीं तो। बल्कि कल तो मैं करीब शाम के 7 बजे ऑफिस से गयी थी और इस वजह से मेरे हॉस्टल तक जाने वाली बस भी छूट गयी थी, क्यों क्या हुआ?” अंतिमा ने आश्चर्य जताया।

“कुछ नहीं, वो दास सर कल शाम को तुम्हारे बारे में पूछ रहे थे”, बरखा ने चेहरे पर थोड़ी चिंता के भाव के साथ कहा।

लाला कंपनी की कार्य संस्कृति का एक प्रचलन ये भी होता है कि आप न देर से आयें और न समय पर जाएँ। कई बार ऑफिस के सुबह 9 से शाम के 6 बजे तक का समय उन गलतियों को सुधारने में लग जाता है जो अकसर शाम को 6 बजे के बाद की गयी होती हैं।

अंतिमा ने सीट पर अपना बैग और खाने का डिब्बा रखा ही था कि शम्भू उसके पास आया।

“नमस्ते मैडम”, शम्भू ने कहा। “नमस्ते शम्भू जी, आपकी माताजी की तबीयत कैसी है अब?”, अंतिमा ने चिंता के भाव के साथ पूछा। “अभी वो ठीक हैं, कल शाम को ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली है”, शम्भू ने बताया।

“मुझे आपसे कुछ बात करनी थी”, शम्भू ने जल्दी से कहा। परन्तु अंतिमा कुछ और ही सोच रही थी वो शम्भू की बात सुन ही नहीं पाई।

“मैं आपसे थोड़ी देर में मिलती हूँ शम्भू जी”, ऐसा कहकर वो दास की केबिन की तरफ चली गयी।

दास की केबिन जिस पर अन्दर की तरफ खुलने वाला शीशे का एक दरवाजा लगा था और उसके नाम का चमकदार बोर्ड भी उस पर लगा था।

“क्या मैं अन्दर आ सकती हूँ?”, अंतिमा ने दरवाजे पर हल्के से दस्तक करते हुए पूछा।

दास ने उसकी आवाज सुनकर उसे बुलाया। “अन्दर आ जाओ, अंतिमा”,

“मुझे पता चला कि कल आप मुझे ढूंढ रहे थे। मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ सर?”, अंतिमा ने दास के सामने खड़े होकर पूछा।

“मदद तो मैं तुम्हारी करना चाहता हूँ। बैठो”, दास ने अपनी आदत से उलट अंतिमा को मेज के सामने की तरफ रखी दो चमकदार कुर्सियों की तरफ इशारा करते हुए कहा।

“थैंक्यू सर”, कहकर अंतिमा भी बैठ गयी। “मेरे पास तुम्हारे लिए एक अच्छी खबर है”, दास ने अजीब तरह से मुस्कराते हुए कहा।

दास कद में तो छोटा था परंतु उसका चेहरा बहुत बड़ा और उजला था।

“सच में!, बताइए क्या खबर है सर?” अंतिमा ने अपनी उत्सुकता को छिपाते हुए पूछा।

“अंतिमा, मैं तुम से काफी प्रभावित हूँ और तुम्हारा प्रमोशन करके तुम्हें मैनेजर बना रहा हूँ उसके बाद तुम संदीप की जगह सीधे मुझे रिपोर्ट करोगी। एक दो दिन में औपचारिकताओं के पूरा होने के बाद तुम्हें प्रमोशन लैटर मिल जायेगा और तुम्हारी सैलरी भी दुगनी कर दी जाएगी, और हाँ इस बात का जिक्र अभी किसी और से मत करना, हमें कुछ बातें गोपनीय रखनी चाहिए”, दास ने आँखों में अजीब सी चमक के साथ अंतिमा से कहा।

अंतिमा और संदीप मेट्रो ट्रेन में ऑफिस की तरफ लौट रहे थे। दास से बात करने के ठीक बाद उसे संदीप के साथ एक जरूरी कस्टमर मीटिंग में जाना पड़ गया था। अंतिमा महिलायों के लिए आरक्षित सीट पर बैठी हुई थी और संदीप उसके बराबर में एक सामान्य सीट पर बैठा था। अंतिमा ने अभी तक दास के साथ हुई बातों को संदीप के साथ साझा नहीं किया था। मेट्रो अगले स्टेशन पर रुकी ही थी कि तभी एक बहुत बुजुर्ग आदमी जिसकी गोदी में एक छोटा बच्चा था ने हांफते हुए मेट्रो में प्रवेश किया और वो अंतिमा के ठीक सामने आकर खड़ा हो गया।

“बाबा, आप बैठिये”, अंतिमा ने अपनी सीट से उठते हुए कहा। “धन्यवाद बेटी”, मुसकराहट के साथ उस बुजुर्ग आदमी ने सीट पर बैठते हुए कहा।

“तुम बैठ जायो अंतिमा” संदीप ने अपनी सीट जो कि एक अनारक्षित सामान्य सीट थी पर से धीरे धीरे उठते हुए कहा।

“नहीं सर आप बैठिये मेट्रो को हमारे स्टेशन तक पहुँचने में करीब एक घंटा लगेगा और मुझे पता है कि आप ज्यादा देर तक खड़े नहीं रह सकते”, अंतिमा ने संदीप से अनुरोध करते हुए कहा। अंतिमा को कुछ ही दिन पहले लगी संदीप के पैर की चोट के बारे में पता था।

“मुझे अच्छा लगा ये देखकर कि तुमने अपनी आरक्षित सीट एक जरूरतमंद को दे दी”, संदीप ने मेट्रो से बाहर निकलते हुए अंतिमा से कहा।

“वो मेरे दादाजी की उम्र के थे। उनको सीट देना मेरा कर्तव्य था”, अंतिमा ने कहा।

“देखो मुझे गलत मत समझना पर ये मेरा एक निजी अनुभव है मैंने बहुत कम देखा है कि कोई महिला अपनी आरक्षित सीट छोड़कर किसी जरूरतमंद को दे और खुद लम्बे समय तक खड़ी होकर यात्रा करें” संदीप ने अपना अनुभव अंतिमा के साथ साझा किया।

“सर, मेरा मानना है कि आरक्षण कमजोर और जरूरतमंद को मिलना चाहिए और मैं, हम महिलायों को कमजोर नहीं मानती और रही बात जरूरतमंद की तो उस समय उस सीट की जरूरत मुझसे ज्यादा उस बुजुर्ग व्यक्ति को थी” अंतिमा ने भी अपनी सोच संदीप के साथ साझा की।

सोनिया को कॉलेज में 8 महीने बीत चुके थे। उसके पिता की बात सच थी। शिक्षक से लेकर होस्टल की वार्डन तक हर कोई उसका अतिरिक्त ख्याल रखता था। इस बात का अहसास होने में उसके सहपाठियों को भी ज्यादा समय नहीं लगा।

“हाय सोनिया, इस बार के सेमिस्टर ख़त्म होने पर घर जा रही हो क्या?”, सोनिया के सहपाठी ने पूछा।

“हाँ जा रही हूँ, डैडी ने हमारे ड्राईवर को मुझे लेने के लिए भेजा है। कल सुबह तक वो हमारी गाड़ी लेकर आ जायेगा”, सोनिया ने आंखें मटकाते हुए उसे बताया।

सोनिया को जब भी घर आना होता था तब वो अपने पिताजी को बोलकर उनकी निजी गाड़ी और ड्राईवर को कॉलेज में बुला लेती थी।

आज हमेशा खुश रहने वाली अंतिमा चुप बैठी हुई थी। उसकी सॉफ्टवेयर विषय की किताबें और वो लैपटॉप दूर पड़ा था जिस पर वो दैनिक रूप से दुनिया में आने वाली सूचना तकनीकी से जुडी नयी जानकारी पढ़ा करती थी।

“अंतिमा, क्या हुआ आज तुम अपने लैपटॉप से बातें नहीं कर रही हो?”, ऋतु ने अंतिमा को काफी देर से चुपचाप बैठे देख कर पूछा।

ऋतु को अंतिमा की तरफ से कोई जवाब नहीं मिला। अंतिमा एक ही दिशा में देखे जा रही थी और उसका चेहरा बिलकुल भाव शून्य था ऐसा लगता था कि जैसे उसके मन में विचारों और भावनायों का कोई तूफ़ान उमड़ आया हो और वो उससे बाहर निकलने के लिए छटपटा रही हो।

“क्या हुआ अंतिमा?” बार बार पूछने पर भी कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर ऋतु ने अंतिमा की बाँह पकड़कर उसे झंझोरा।

ऋतु के उसे झंझोर ने के कारण उसके मन मैं पैदा हुआ सैलाब आंसुओं के रूप में छलक कर उसकी आँखों से फूट पड़ा परन्तु वो अभी भी शांत थी ये देखकर ऋतु ने उसे गले लगा लिया।

काफी देर तक पूछने के बाद अंतिमा ने जो सच ऋतु को बताया वो कुछ इस प्रकार था।

उस दिन क्लाइंट मीटिंग से लौटने के बाद अंतिमा घर के लिए निकल ही रही थी कि दास ने उसे अपने केबिन में बुलाया। ऐसा लग रहा था जैसे वो काफी देर से अंतिमा का ही इंतज़ार कर रहा हो वो थोड़ी हडबडाहट में भी था।

अंतिमा उसकी आज्ञा लेकर उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गयी। दास काफी देर तक शांत रहा और उसके बाद उसने इधर उधर की बातें शुरू कर दीं। अंतिमा परेशान थी क्योंकि शाम के सात बज रहे थे। उसकी बस के जाने का समय भी निकल रहा था और दास ने अभी तक कोई मुद्दे की बात नहीं की थी। वो ये सोचकर भी हैरान थी कि इस समय दास ने उसे बेकाम की बातें करने के लिए क्यूँ बुलाया था।

काफी देर तक बिना किसी मुद्दे की बातें करने के बाद दास ने कहा।

“यार अंतिमा, मैं इतने दिनों से तुमसे कुछ कहना चाह रहा था और तुम हो कि सुन ही नहीं रही हो”, दास ने अजीब से भाव के साथ अंतिमा को घूरते हुए कहा।

दास के मुंह से अपने लिए ‘यार’ शब्द सुनकर वो फिर से हैरान थी ।

“मैं समझी नहीं सर आप क्या कहना चाहते हो?”, अंतिमा ने हैरान होते हुए कहा।

“अच्छा एक बात बताओ, मैं तुम्हें कैसे लगता हूँ?” दास ने थोड़ा मुस्कराते हुए जल्दी से पूछा।

“सर, आप मुझसे बहुत सीनियर है, आपको हमारे सॉफ्टवेयर उधोग का विशाल अनुभव है और आप मेरे लिए एक बहुत ही सम्माननीय व्यक्ति हैं”, अंतिमा ने झिझकते हुए कहा।

ये सुनकर दास और चिड गया अभी उसे सम्मान की जरूरत नहीं थी वो कुछ और ही चाहता था फिर उसने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा।

“अंतिमा तुम्हें समझना चाहिए, मैं तुमसे कितने दिनों से शाम को डिनर पर चलने के लिए कह रहा हूँ पर तुम हर बार टाल देती हो”

“मुझे लगा आप वो सब मजाक में कह रहे थे”, अंतिमा ने अचंभित होते हुए जल्दी से कहा।

अंतिमा आगे कुछ बोल पाती उससे पहले दास ने चिढ़ कर चेहरे पर क्रोध लाते हुए कहा।

“फिर तो तुम्हें वो भी मजाक लगा होगा जब मैंने सुबह कहा कि मैं तो तुम्हारा प्रमोशन कर रहा हूँ। अंतिमा, जिंदगी में हर चीज की एक कीमत होती है मैं तुम्हें इतनी कम उम्र में तरक्की दे रहा हूँ जिसके लिए लोगों को इस उधोग में सालों लग जाते हैं तो तुम्हें भी मेरे बारे में भी सोचना चाहिए”, दास ने अपनी कुर्सी से खड़े होकर मेज पर हाथ रखते हुए कहा।

अंतिमा अभी भी समझ नहीं पा रही थी कि दास क्या चाहता है परन्तु उसे ज्यादा देर तक उलझन में रहने की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि दास के सब्र का बाँध टूट गया और वो सीधे मुद्दे पर आ गया।

“देखो अंतिमा, तुम सुन्दर हो, जवान हो और साथ में महत्वाकांक्षी भी हो, तुम्हारे जैसे शरीर की लड़की जिंदगी में क्या नहीं पा सकती, बस तुम्हें जिंदगी में मिल रहे मौके का सही लाभ उठाना आना चाहिए। मेरे शादी शुदा जीवन में कुछ खास नहीं बचा है और कुछ दिनों से मैं तुम्हें बहुत पसंद करने लगा हूँ। मैं तुम्हें वैसे ही पसंद करता हूँ जैसे एक मर्द किसी औरत को करता है। मेरी बात मान लोगी तो जिंदगी में बहुत मजे करोगी”

अब अंतिमा को पूरी बात समझ आ चुकी थी कि दास क्या चाहता है। अंतिमा का चेहरा सुर्ख लाल हो चुका था वो अपनी कुर्सी से उठ कर खड़ी हो गयी।

“मैं आपको एक गुरु के रूप में सम्मान की नजर से देखती थी आप मेरे पिता की उम्र के हैं मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आप मेरे बारे में ऐसा नजरिया रखते है। आज मुझे आपको देखकर घिन आ रही है”, अंतिमा ने अपने अन्दर के क्रोध रुपी लावे को सँभालते हुए कहा।

दास को थोडा अपनी तरफ बढ़ते देख अंतिमा ने तेजी से उसके केबिन का दरवाजा खोला और करीब करीब भागते हुए अपनी मेज पर से अपना बैग उठाकर ऑफिस से बाहर निकल गयी।

अंतिमा को इतनी तेजी से दास के केबिन से बाहर निकल कर जाते देख कुछ कर्मचारी जो अभी तक ऑफिस में ही थे, अपनी कुर्सियों से खड़े हो कर देखने लगे।

दास फिर से अपनी कुर्सी पर ऐसे शांत हो कर बैठ गया जैसे कुछ हुआ ही न हो।

ये सब बताने के बाद अंतिमा फिर से सुबक उठी तो ऋतु ने उसे गले लगा लिया थोड़ी देर बाद जब अंतिमा शांत हुई तो ऋतु ने उससे बात करना शुरू किया।

“क्या तुमने ये बात ऑफिस में किसी और को बताई?”, ऋतु ने पूछा। अंतिमा ने ना में सर हिलाया। “घर पर पापा को?”, “नहीं पापा को नहीं बता सकती वो बहुत डर जायेंगे और शायद मुझे वापस बुला लें”, अंतिमा ने भीगे हुए चेहरे पर डर के भाव के साथ कहा।

“हिम्मत रखो अंतिमा, मैं तुम्हारे साथ हूँ!”, ऋतु ने कहा। देखो अगर पुरुषों द्वारा महिलायों को देखने के नजरिये से देखें तो तुम्हें हमारे समाज में तीन तरह के पुरुष मिलेंगे। पहले वो जो महिलायों और पुरुषों को समान मानकर उन्हें एक इंसान के रूप में देख पाने का सामर्थ्य रखते हैं। दूसरे वो जो एक औरत को कम से कम एक औरत के रूप में देख पाते हैं और तीसरे वो जो कि समाज के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हैं औरत को सिर्फ और सिर्फ एक अंग के रूप में देखते हैं और उससे ज्यादा कुछ भी नहीं। ये वो पुरुष होते हैं जिनके लिए औरत ऊपर से लेकर नीचे तक सिर्फ एक भोग की वस्तु होती है”, ऋतु ने बोलना जारी रखा।

“मुझे तो कभी कभी अचम्भा और दुःख दोनों होता है कि इन तीसरे दर्जे के लोगों को अपनी माँ, बहन या बेटी को एक अंग के रूप में देखने से बचने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ता होगा। ये तीसरी श्रेणी के लोग हमारे समाज में तुम्हें कहीं भी मिल सकते हैं सड़क से लेकर ऊँचे से ऊँचे पद तक। इस तरह के लोगों को समाज और कानून के सामने लाना बहुत जरूरी है”,

“तुम्हें हिम्मत रखनी होगी सोमवार को सबसे पहले इस घटना की शिकायत तुम अपने मानव संसाधन विभाग में करो। तुम्हें डरना नहीं चाहिए। तुम्हें अपने साथ हुए शोषण की बात पुरजोर से रखनी होगी”, ऋतु ने उसका ढांढस बंधाते हुए कहा।

अंतिमा हमेशा कि तरह समय पर ऑफिस पहुंची परन्तु आज उसके चेहरे पर हमेशा वाली चमक नहीं थी। दो दिन से बिलकुल नींद न लेने के कारण उसके आँखों के नीचे काले घेरे बन गए थे। आज उसके दिमाग में काम की कोई भी योजना नहीं थी बस वो तो जल्दी से जल्दी टीना से मिलना चाहती थी।

उसको ये देखकर भी बड़ा आश्चर्य हुआ कि ऑफिस में कुछ चंद लोग आज उसे अजीब तरह से देख रहे थे वो ये सोच कर सकते में थी कि उसने तो ये बात ऑफिस में अभी तक किसी को नहीं बताई है तो फिर ये लोग। फिर उसने खुद को समझाया कि ये उसका वहम भी हो सकता है।

वो अपनी सीट पर पहुंची ही थी कि शम्भू उसके पास से निकलते हुए चुपके से उसे एक पर्ची दे गया।

“क्या हुआ शम्भू जी मुझे यहाँ क्यूँ बुलाया?”, अंतिमा ने ऑफिस के पीछे वाले बाजार की एक गली में शम्भू से मिलते ही पूछा।

“मैं आपको कुछ बताना चाहता था। शुक्रवार की सुबह भी मैं आपके पास आया था पर आप शायद जल्दी में थी और आप से मेरी बात नहीं हो पाई।

“देखिये मैडम, मेरा मोबाइल कंपनी का दिया हुआ है इसलिए मैंने इससे आपको कॉल करना ठीक नहीं समझा और ऑफिस के लैंड लाइन फ़ोन से कॉल इसलिए नहीं करा क्योंकि मैंने सुना है कि ऑफिस के फ़ोन पर कर्मचारियों की बातें रिकार्ड की जाती हैं और आपको यहाँ इसलिए बुलाया क्योंकि अपने ऑफिस का कोई भी व्यक्ति इधर कभी कभार ही आता है”, शम्भू ने स्पष्ट किया।

“पर शम्भूजी आप मुझे क्या बताना चाहते हैं?”, अंतिमा ने संशय के साथ पूछा।

“मुझे पता है कि दास ने आपके साथ कुछ बुरा किया है, मैं कल शाम को ऑफिस में नहीं था परन्तु आज सुबह मुझे दास के बडबोले चमचों से पता चला। मुझे पता नहीं उसने आपको क्या बोला पर मुझे इस तरह की घटना का अंदाजा काफी दिन पहले हो गया था और इसके प्रति मैं आपको आगाह भी करना चाहता था पर मैं चूक गया और मुझे इसका बहुत मलाल रहेगा”, शम्भू ने निराशा की भाव के साथ अपनी बात ख़त्म की।

अंतिमा जानती थी कि शम्भू व्यक्तिगत रूप से एक ईमानदार व्यक्ति है और उस पर भरोसा किया जा सकता है इसलिए उसने अपने साथ हुई पूरी घटना शम्भू को बताई।

“आपको शायद पता न चला हो पर ऑफिस में ज्यादातर लोग जानते हैं कि दास एक गिरे हुए चरित्र का व्यक्ति है और कुछ लोग हैं जिनको शुरू से पता था कि दास आप से क्या चाहता है परन्तु उनमें से किसी की हिम्मत नहीं हुई कि आपको बता सके”, शम्भू ने रहस्य की बात अंतिमा को बताई।

अंतिमा को ये जानकर फिर से आश्चर्य हुआ कि ऑफिस के ज्यादातर कर्मचारी दास का इरादा जानते थे और फिर भी किसी ने उसे नहीं बताया।

“मैं इस ऑफिस में 15 सालों से काम कर रहा हूँ और हर व्यक्ति को अच्छी तरह से समझता हूँ। क्या आप जानती हैं कि दास में इस पद पर पहुँचने के बाद भी असुरक्षा और अहम की भावना इतनी गहरी है कि ऑफिस में उससे निचले दर्जे का कोई कर्मचारी अगर नए गाड़ी खरीद ले, नया मोबाइल खरीद ले और यहाँ तक कि नए कपडे या नए जूते पहन कर आ जाये तो वो बुरी तरह चिड जाता है”

“दास वासना से घिरा हुआ व्यक्ति है और महिलाएं उसकी कमजोरी हैं। आप को ये जानकर और भी आश्चर्य होगा कि आप इस कंपनी में ऐसी पहली महिला कर्मचारी नहीं है जिसे उसने इस तरह का प्रस्ताव दिया”

अंतिमा के आश्चर्य की सीमा बढती ही जा रही थी।

“क्या उसने पहले भी किसी और लड़की के साथ भी ऐसा किया था”, अंतिमा ने घबराहट भरी जिज्ञासा के साथ पूछा।

“हाँ, कई थीं, परन्तु वो अवसरवादी थीं। उन्होंने दास की बात मान ली और बाद में जब दास ने उनकी जिंदगी नर्क बना दी तो वो परेशान होकर कंपनी छोड़कर चली गयीं। किसी ने भी उसके खिलाफ लड़ने की हिम्मत नहीं दिखाई परन्तु मुझे ये जानकर अच्छा भी लगा कि कोई है जिसने उसके प्रस्ताव को नहीं स्वीकार और उसको मुंह तोड़ जवाब दिया”

“शम्भूजी, मैं ये मानती हूँ कि वो दोनों स्थितियाँ ही बहुत खतरनाक हैं जब आपको फायदा या नुकसान आपके स्त्री या पुरुष होने के आधार पर मिलता है न कि आपकी असली काबिलीयत के आधार पर”, अंतिमा ने जवाब दिया।

“मुझे गलत मत समझिये परन्तु इतिहास गवाह है मैडमजी, जब जब औरतों ने पुरुषों द्वारा बनाये गए नियमों और कुरीतियों को अपनी नियति समझकर विरोध करने से खुद को रोका है तब तब उन्होंने अपनी आगे आने वाली हर पीड़ी की महिला को वो कुरीति तोहफे में दी है पर ये भी सच है कि जब किसी एक पीडी में कोई महिला किसी कुरीति की खिलाफ उठ खड़ी होती है तो वो उसके आगे आने वाली हर पीडी की महिला का उद्धार करके जाती है”, कहते कहते शम्भू का चेहरा लाल हो गया।

अंतिमा टीना की केविन में थी और उसे पूरी बात बता चुकी थी इस घटना को सुनकर टीना किसी सोच में पड़ गयी।

“अंतिमा, मैं तुम्हारी पूरी मदद करूँगी पर ये बात ऑफिस में किसी और को मत बताना पर एक बात तो है अंतिमा, तुम्हें अपने आत्मविश्वास को थोडा बढाना चाहिए। मैंने तुम्हें कितनी बार बोला था कि थोडा मेकअप करके आया करो उससे स्त्री का आत्मविश्वश बढ़ता है तुम्हें शायद पता न हो पर आज के समय में अगर शृंगार न करो तो अपना पति भी हम पर ध्यान नहीं देता”, टीना ने अपनी पूर्वाग्रह वाली सोच जाहिर की।

अंतिमा को टीना की बात कुछ अटपटी सी लगी।

“मुझे आपकी बात का तर्क समझ नहीं आया”, अंतिमा ने गुस्से और आश्चर्य के मिले जुले भाव के साथ पूछा।

“जाने दो, ये बताओ कि अब तुम क्या चाहती हो?”, टीना ने अंतिमा चेहरे की भाव को देखकर प्रश्न को टालते हुए पूछा।

“मैं चाहती हूँ कि आप एच.आर. विभाग की अध्यक्ष होने के नाते दास पर इस घृणित प्रस्ताव के लिए उचित कार्यवाही करें।

“कार्यवाही, पर कैसे? मैं मानती हूँ उसने तुम्हारे साथ गलत व्यवहार किया है परन्तु वो कंपनी में मुझसे उच्च पद पर हैं”

अब अंतिमा ने अपने दाँत भीचे और उसका चेहरा गुस्से से लाल हो चुका था ऐसा लग रहा था जैसे शांत रहने वाले समुद्र में कोई सुनामी आने वाली हो ।

“मैं आपको एक बात स्पष्ट कर देना चाहती हूँ अगर आपने उस पर कार्यवाही नहीं की तो मेरे पास कंपनी के बाहर से मदद लेने के अलावा कोई और विकल्प नहीं होगा”, अंतिमा ने स्पष्ट किया।

“बाहर से तुम्हारा मतलब?”, टीना ने तुरंत पूछा।

“मैं आज ही पास वाले पुलिस स्टेशन में दास के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाउंगी”, अंतिमा ने सख्ती के साथ कहा।

“रिपोर्ट परन्तु किस जुर्म में”, टीना ने पूछा। “कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न अधिनियम 2013 के अंतर्गत”, अंतिमा ने जवाब दिया।

“परन्तु उसने तो तुम्हें छुआ तक नहीं”, टीना झुंझलाते ने कहा।

“मुझे ये जानकार आश्चर्य हुआ कि आप स्वयं एक महिला होकर भी ऐसी बात कर रहीं है खैर मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि इस कानून के सेक्शन 2 में साफ लिखा है कि किसी कार्यस्थल पर यदि किसी भी महिला से किसी भी सहकर्मी, वरिष्ठ या किसी भी स्तर के क्रमिक द्वारा उससे यौन संबंध बनाने के लिए अनुरोध किया जाता है, उसकी उम्मीद की जाती है या फिर उसे किसी भी तरह से प्रलोभन देकर, डरा कर या किसी अन्य तरह से उस पर ऐसा करने के लिए दबाव डाला जाता है तो ये सब यौन उत्पीडन के अंतर्गत आयेगा और हाँ ये शिकायत अब मैं ऑनलाइन भी दर्ज करा सकती हूँ”, अंतिमा ने टीना की आँखों में आंखें डाल कर कहा।

अंतिमा ने ऑफिस आने से पहले काफी वक्त इन्टरनेट पर कार्यस्थल कानून के अध्ययन में लगाया था। अगर गौर से देखें तो इंटरनेट लोगों के लिए एक वरदान और अभिशाप दोनों हो सकता है। टेक्नोलजी स्वयं में निष्पक्ष होती है ये तो इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसका उपयोग किस रूप में करते है।

“हाँ एक और बात अगर मुझे यहाँ न्याय नहीं मिला तो मैं इसके बारे में मीडिया को बताऊंगी”, अंतिमा ने अंतिम स्पष्टीकरण दिया।

अंतिमा के बात सुनकर टीना के हाथ पैर फूल गए क्योंकि वो जानती थी कि एच.आर. प्रमुख होने के नाते अंत में उसे ही इस सब से निबटना होगा। टीना अपनी सीट से उठी और भाग कर सीधे श्रीमती संगीता कटारिया के केबिन में पहुंची। वास्तव में वो आधिकारिक रूप से संगीता कटारिया को ही रिपोर्ट करती थी। लगभग 20 मिनट के बाद वो लौट कर अपने केबिन में वापस आई। उससे पहले टीना और संगीता कटारिया के बीच उस केबिन में क्या बात हुए ये कोई नहीं जान सकता था।

“अंतिमा, तुम चिंता मत करो, बहुत हो चुका ! अगर तुम्हें न्याय नहीं मिला तो मैं खुद इस कंपनी से इस्तीफा दे दूंगी”, टीना ने अपनी कुर्सी पर बैठते हुए अंतिमा से कहा।

टीना कुर्सी पर आकर बैठी ही थी की संगीता कटारिया अपनी केबिन से निकलीं और तनतनाते हुए सीधे दास के केबिन में चली गयीं उनके चेहरे पर गुस्सा साफ़ देखा जा सकता था। अंतिमा के साथ साथ पूरा ऑफिस इस सब को चुपचाप देख रहा था। करीब करीब 40 मिनट के बाद वो बाहर आयीं और अपने स्थान पर वापस चली गयीं गयीं पर दास अपनी केबिन में ही बैठा रहा। केबिन में उन दोनों के बीच क्या बात हुए ये कोई नहीं जानता।

थोड़ी देर बाद संगीता कटारिया ने अंतिमा को अपनी केबिन में बुलाया करीब 30 मिनट बाद अंतिमा उनकी केबिन से बाहर निकली उन दोनों के बीच क्या बात हुई ये बात उन दोनों के अलावा और कोई नहीं जान पाया।

वॉरेन फैरल जोकि एक अमेरिकी लेखक हैं उन्होंने अपनी किताब ‘दि मिथ ऑफ मेल पॉवर’ में लिखा है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन एक ऐसी बुराई है जोकि एक कर्मचारी को अच्छे कार्य के लिए दिए जाने वाले पुरस्कार को किसी कर्मचारी के शारीरिक आकर्षण और यौन उपलब्धता के लिए दिए गए प्रतिफल के साथ भ्रमित करती है।

तीन साल बाद , वर्तमान समय में

श्रीमती संगीता कटारिया ने रिटायरमेंट ले लिया था। दास को प्रमोट करके डायरेक्टर बना दिया गया था। टीना अब भी उसी कंपनी में थी और उसकी भी पदोन्नति हो गयी थी। टीना अब भी उस कॉलेज में साक्षात्कार लेने जाती थी बस फर्क इतना था कि अब वो लड़कियों को अपनी कंपनी में नौकरी के लिए नहीं चुनती थी।

वो व्यक्ति सोनिया को गाडी के अन्दर पूरी तरह खींचने ही वाला था कि तभी एक चमत्कार हुआ कहीं से आये दो हाथों ने पूरी ताकत से सोनिया को गाड़ी से बाहर की तरफ खींचना शुरू किया। सोनिया की भी थोड़ी हिम्मत वापस आई और उसने पूरी ताकत से उस व्यक्ति के हाथ पर काट लिया जिससे उस व्यक्ति की पकड़ सोनिया पर से ख़त्म हो गयी और वो गाड़ी के बाहर सड़क पर गिर गयी। सौभाग्य से ट्रैफिक सिगनल की बत्ती भी हरी हो गयी थी। उस व्यक्ति ने फटाफट से गाड़ी में बैठकर दरवाजा बंद किया और वो गाड़ी तेजी से वहां से चली गयी।

सोनिया अभी भी सड़क पर ही पड़ी हुई थी तभी फिर से उन्हीं दो हाथों ने उसे पकड़कर उठाया।

सोनिया ने उठते हुए अपने कपडे ठीक किये और उस चेहरे की तरफ देखा जिसने आज उसे एक नयी जिंदगी दी थी। वो ये जानकर हैरान हुई कि उसे बचाने वाली भी लगभग उसी की उम्र की एक लड़की थी।

अंतिमा को आज अच्छा लग रहा था कि उसके स्कूल-कॉलेज में लिए गए आत्मरक्षा प्रशिक्षण और खुद को शारीरिक रूप से दुरुस्त रखने की लगन से बनाये गए मजबूत हाथों ने आज किसी की जान बचायी थी।

सोनिया के चेहरे पर गहरे डर के भाव थे ये देखकर अंतिमा ने उसे गले लगाया। थोड़ी देर बाद वो दोनों सामान्य हुईं।

“मैंने देखा वो गाडी बिलकुल आपके पीछे चल रही थी पर आपको शायद कानों में लगे इन इयरफोन्स की वजह से उसका आभास नहीं हुआ”, अंतिमा ने अभी भी सड़क पर पड़े सोनिया के इयरफोन्स की तरफ इशारा करते हुए कहा

“मैं पास की ही एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करती हूँ। मेरा ऑफिस ओवरब्रिज के उस पार है इसलिए मुझे भी रोजाना इस ट्रैफिक सिगनल तक आना पड़ता है। मैंने जब उस गाड़ी को आपका पीछा करते हुए देखा तो मुझे कुछ गलत लगा। जब वो व्यक्ति आपको गाडी में अन्दर खींचने लगा तो मैंने वहीं से दौड़ना शुरू कर लिया अगर मैं एक सेकंड भी लेट हो जाती तो अनर्थ हो जाता”, अंतिमा ने स्पष्ट किया

सोनिया बहुत कुछ कहना चाहती थी पर उसके मुंह से केवल थैंक्स शब्द ही निकल पाया। अंतिमा उसकी परिस्थिति समझा सकती थी। सोनिया खुद को भी कोस रही थी कि वो उस बस से क्यूँ आई परन्तु उसके डैडी की निजी गाडी ख़राब हो जाने के कारण उसके पास कोई और विकल्प नहीं बचा था

“क्या आप मुझे बता सकती हैं कि यहाँ आस पास कोई पुलिस स्टेशन है क्या? मुझे इस घटना की रिपोर्ट लिखानी है”, सोनिया ने अपने आंसू पोंछ कर अपने चेहरे से डर के भावों को छिपाते हुए पूछा।

अंतिमा ने अपने मोबाइल के इन्टरनेट पर चेक करके सबसे पास के पुलिस स्टेशन का पता ढूंढा और फिर वो दोनों ने ऑटो करके पुलिस स्टेशन तक पहुंची।

“देखिये मैडम, मैं आपकी परेशानी समझ सकता हूँ पर मैं आपको बता दूं कि आप गलत पुलिस स्टेशन आ गयी हैं वो इलाका जहाँ ये घटना हुई वो हमारे पुलिस स्टेशन की अधिकारिक सीमा में नहीं आता मैं आपको सही पुलिस स्टेशन का पता देता हूँ”, थानेदार ने टाल मटोल करते हुए कहा।

“देखिये सर अगर वो इलाका आपके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता तो आप कम से कम जीरो एफ.आयी.आर. तो लिख सकते हैं न जिसके अंतर्गत इस तरह की घटना की रिपोर्ट किसी भी थाने में लिखाई जा सकती है और मामले की जाँच और सबूत इकट्ठा होने के बाद उसे सही थाने में स्थान्तरित किया जा सकता है”, अंतिमा ने दृढ़ता के साथ कहा।

अंतिमा की बात सुनकर वो पुलिस वाला समझ गया कि इन्हें अपने अधिकार के बारे में पता है और वो जीरो एफ.आयी.आर. लिखने के लिए तैयार हो गया।

“मैडम, मैं आपकी जीरो एफ.आयी.आर. तो दर्ज कर लेता हूँ पर ये तो बताइये कि आपको उस गाडी का नंबर, व्यक्ति का चेहरा, कुछ याद है वरना ये केस ज्यादा आगे नहीं जा पायेगा”, थानेदार ने मुस्कराते हुए कहा।

“आप एफ.आयी.आर. तो दर्ज कीजिये सर”, सोनिया ने कहा।

थानेदार ने पेन उठाया और एक हरे पेज वाले रजिस्टर पर लिखना शुरू किया।

“आपका नाम?”, थानेदार ने पूछा।

“सोनिया”, सोनिया ने जवाब दिया।

“पूरा नाम बताइये”, “सोनिया दास”, थानेदार के जोर देने पर सोनिया ने कहा।

“पिता का नाम?”, “सुजॉय दास ”, सोनिया ने जोर देकर बताया।

सोनिया और उसके पिता का पूरा नाम जानकर अंतिमा चौंक गयी और रिपोर्ट दर्ज कराकर लौटते समय सोनिया के साथ हुई थोड़ी और बातचीत से वो पूरी तरह जान गयी कि सोनिया उसी सुजॉय दास की बेटी है जिसने उसके साथ वो भद्दा व्यवहार किया था। आज उसका मन ऑफिस में भी नहीं लगा और वो घर पर आकर दो साल पहले अपने और संगीता कटारिया के बीच उस केबिन हुए वार्तालाप के बारे में सोचने लगी।

“अंतिमा, मेरी बेटी, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है। मैंने दास की अच्छी तरह से खबर ली है और मैं इस बारे में उमेश से भी बात करूँगी अगर आज उमेश किसी काम से बाहर न गया होता तो दास आज इस ऑफिस में न बैठा होता। तुम चिंता मत करो तुम्हें पूरा न्याय मिलेगा”, संगीता कटारिया ने उसका हाथ पकड़ कर कहा।

अंतिमा ने सर हिला कर उनका अभिवादन किया।

“अरे हाँ, टीना मुझे बता रही थी कि तुम इस सब के बारे में मीडिया को बताने वाली हो।

“हाँ, अगर मुझे यहाँ न्याय नहीं मिला तो”, अंतिमा ने जवाब दिया।

“तुम्हें मीडिया में भी जाने का पूरा हक है पर मैं तुम्हें थोड़ी गहराई से सोचने की भी सलाह दूंगी। जरा गौर से देखो कितने कर्मचारियों की रोजी रोटी और जिंदगी इस कंपनी से चलती है” संगीता कटारिया ने अपने केबिन के शीशे से बाहर की तरफ इशारा करते हुए कहा।

तुम्हें तो पता ही होगा मीडिया वालों के बारे में वो लोग तो अपनी टी.आर.पी बढ़ाने के लिए ऐसी स्टोरी ढूंढते ही रहते हैं। इस स्टोरी को भी वो जोर शोर से दिखायेंगे। तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की तो बदनामी होगी ही साथ में कम्पनी की साख को भी गहरा आघात पहुंचेगा।

तुम तो जानती ही हो कि व्यापार में साख ही सब कुछ है और अब तुमसे क्या छुपा है जैसा कि हमारे ज्यादातर ग्राहक सरकारी विभाग है और जब उन्हें इस घटना के बारे में पता चलेगा तो वो हमारी कंपनी को अपने यहाँ काम देने से प्रतिबंधित कर देंगे और अगर कंपनी को काम मिलना बंद हो गया तो ये जो हाउस कीपिंग स्टाफ है, ये सपोर्ट स्टाफ, ये शम्भू और उस जैसे सैंकड़ो कर्मचारी जो कि सालों से यहाँ काम कर रहे हैं उनकी तो रोजी रोटी ही ख़त्म हो जाएगी, कहाँ जायेंगे ये सब लोग?, कौन देगा इन्हें नौकरी?”, संगीता कटारिया ने अंतिमा को समझाने की कोशिश की।

ये सब सुनकर अंतिमा सोच में पड़ गयी। संगीता कटारिया ने बड़ी चतुराई से नैतिकता को न्याय के रास्ते में लाकर खड़ा कर दिया था। ये नैतिकता उससे स्वयं के स्वाभिमान को त्याग कर निस्वार्थ को अपनाने की जिद करने लगी। स्वयं के लिए न्याय की लड़ाई में दूसरों का भविष्य उसके आड़े आने लगा।

तभी फ़ोन पर आये मैसेज की रिंगटोन की वजह से वो ख्यालों से बाहर आई। ये मैसेज सोनिया का था सोनिया ने अंतिमा का फ़ोन नंबर ले लिया था परन्तु अंतिमा ने सुबह से उसके किसी फोन का जवाब नहीं दिया था क्योंकि वो सोच रही थी कि वो उस व्यक्ति की बेटी की मदद क्यूँ करें जिसने उसका फायदा उठाने की कोशिश की।

थक हार कर सोनिया को अंतिमा को मैसेज भेजा पड़ा।

“हेलो अंतिमा.. पुलिस स्टेशन से कॉल आया था कि आगे की कार्यवाही के लिए आपको गवाह और कोई सबूत या जानकारी लानी होगी जिससे कि ये केस आगे बढ सके, मुझे तुम्हारी मदद की सख्त जरूरत है। क्या तुम सुबह आठ बजे उसी पुलिस स्टेशन पर आ सकती हो?”

सुबह के 10 बज चुके थे सोनिया काफी देर से अंतिमा का इंतज़ार करते हुए रास्ते की तरफ ताक रही थी अंतिमा का दूर दूर तक कोई पता न था और उसका फ़ोन भी स्विच ऑफ आ रहा था।

दास की गाडी पुलिस स्टेशन के बाहर खड़ी थी उसने पिछले दो घंटे में कई बड़े पुलिस अधिकारियों से बात की थी पर हर कोई कह रहा था कि पुलिस ये केस तभी आगे बड़ा सकती है जब छानबीन करने के लिए कोई सुराग उनके हाथ लगे।

तभी सोनिया को अंतिमा एक ऑटो में आती हुई दिखाई दी उसके साथ एक और व्यक्ति था वो ऑटो से उतर कर सोनिया से मिलते हुए सीधे थानेदार के पास पहुंची।

दास अंतिमा को देख कर सक पका गया पर बिना बोले सर झुका कर बैठ रहा।

“हाँ तो अंतिमाजी, आपको गाडी का नंबर याद है?”, थानेदार ने पूछा।

“नहीं , पर मेरे पास उस संभावित अपराधी का नाम है”, अंतिमा ने जवाब दिया।

“मतलब?” थानेदार को कुछ समझ नहीं आया।

“बॉबी”, अंतिमा ने कहा। “कौन है ये बॉबी?” थानेदार ने उत्सुकता दिखाते हुए पूछा।

“मैं आपको सब समझती हूँ, जब वो गाड़ी सोनिया का पीछा कर रही थी तो हल्की धुंध होने कारण मैं गाडी का पूरा नंबर तो नहीं पढ़ पायी परन्तु नंबर प्लेट पर मुझे अंग्रेजी का एक नाम बॉबी दिखाई दिया जो कि कुछ ज्यादा ही उभरा दिखाई दे रहा था”, अंतिमा ने अंग्रेजी में बॉबी शब्द एक कागज़ पर लिखते हुए कहा।

“कैसी बातें कर रही हो मैडम, नंबर प्लेट पर नाम? ऐसा कैसे हो सकता है?”, थानेदार ने चौंकते हुए कहा।

“सर, शायद आपने कई लोगों को देखा होगा जो ज्यादा पैसे देकर गाड़ियों के रजिस्ट्रार विभाग से एक विशेष नंबर खरीदते हैं जैसे कि 001, 002 आदि इनके अलावा एक विशेष नंबर और होता है 8084 जो कि दिखने में साधारण लगता है”, अंतिमा ने थानेदार को समझाना शुरू किया।

“अगर गौर से देखें तो 8084 नंबर को रेलवे स्टेशन पर लगी डिजिटल घडी के फॉण्ट में लिखने पर कुछ कुछ अंग्रेजी के शब्द BOBY जैसा दिखने लगता है। ऐसा नंबर आप ऑफिस के कैलकुलेटर पर 8084 टाइप करके भी बना सकते हैं”, अंतिमा ने कागज पर पहले से लिखे हुए अंग्रेजी के शब्द बॉबी के बगल में ही अस्सी चौरासी नंबर को डिजिटल घडी के फॉण्ट में कागज पर लिख कर दिखाया

इसी बात का फायदा उठा कर वो लोग जिनका नाम बॉबी होता है नंबर प्लेट से सम्बंधित नियमों को ताक पर रखके अपनी नंबर प्लेट पर 8084 नंबर को इस तरह से लिखाते हैं कि वो देखने में अंग्रेजी के शब्द बॉबी जैसा लगे”, अंतिमा ने अपनी बात ख़त्म की।

“वो तो ठीक है मगर दिल्ली और आस पास के क्षेत्रों मैं ऐसी कई गाड़ियाँ हो सकती हैं जिनका आखिरी नंबर 8084 होगा?”, थानेदार ने पलट कर सवाल किया।

“बिलकुल सही कहा आपने, इनसे मिलिए आप हैं श्रीमान जोसफ वर्घिस, ये दिल्ली के क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के सूचना विभाग में सॉफ्टवेयर इंजिनियर का काम करते है”, अंतिमा ने अपने साथ आए व्यक्ति का परिचय कराया।

“आज सुबह उठ कर मैं सबसे पहले श्रीमान जोसफ वर्घिस से मिलने उनके कार्यालय गयी और इन्हें पूरी बात समझाकर इनसे मदद मांगी। एक और बात मैं आपको बताना भूल गयी थी कि मुझे उस गाडी के नंबर प्लेट पर लिखे बॉबी शब्द के अलावा उस गाडी का ब्रांड और मॉडल नंबर भी याद रहा क्योंकि वो एक विशेष लक्ज़री गाडी थी और इस लक्ज़री गाडी पर उसका ब्रांड और मॉडल बड़े बड़े अक्षरों में लिखा होता है।

मेरे आग्रह पर श्रीमान जोसफ अपने विभाग के गाड़ियों के पंजीकरण के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके उसमें से दिल्ली राज्य और अपने सूत्रों के माध्यम से आस पास के राज्यों में पंजीकृत गाड़ियों के डाटाबेस से उन सब गाड़ियों की लिस्ट निकाली जिनके अंत में अस्सी चौरासी नंबर आता है और किस्मत से उन सब गाड़ियों में इस ब्रांड और मॉडल की सिर्फ एक ही गाडी थी और ये गाडी जिस व्यक्ति के नाम पर पंजीकृत है उसका नाम है बॉबी पाहुजा”, अंतिमा ने अपनी बात ख़त्म कर दी

पुलिस ने अपनी जांच शुरू की तो पाया की बॉबी पाहुजा शहर के एक बड़े और नामी नेता का बेटा है और उसी पल से राजनैतिक दबाव के कारण पुलिस जाँच को आगे बढाने से बचने लगी।

“क्या हुआ डैड, कुछ बात हुई इंस्पेक्टर से?”, सोनिया ने घर वापस आये दास से पूछा।

“सब बिके हुए हैं, इंस्पेक्टर से लेकर कमिशनर तक सबसे मिल चुका हूँ कोई भी सपोर्ट नहीं कर रहा हैं ऐसा लगता है सब मिले हुए हैं। ये सारा सिस्टम ही भ्रष्ट है”, दास ने सोफे पर बैठते हुए कहा। बेटी के साथ हुई घटना और न्याय के लिए दर दर भटकने की निराशा उसके चेहरे पर साफ़ देखी जा सकती थी। सोनिया का दर्द उससे देखा नहीं जा रहा था वो उस घटना को याद करके अभी भी सदमे में थी और दो दिनों से ठीक से सोयी भी नहीं थी।

आज दास की अवस्था वैसी ही थी जैसी कि दो साल पहले अंतिमा की थी। उस समय अंतिमा की शिकायत पर किसी ने कार्यवाही नहीं की थी और आज दास की शिकायत कोई नहीं सुन रहा था बस अंतर इतना था कि उस समय दास अपनी कम्पनी के सिस्टम में उच्च स्थान पर था परन्तु आज वो राजनीति और प्रशासन के सिस्टम में एक निचले स्थान पर था।

ज्यादातर लोग सोचते हैं कि समय एक सीधी रेखा पर चलता है। भूत-वर्तमान-भविष्य परन्तु ऐसा नहीं है समय की चाल चक्रीय होती है।

जर्मन दार्शनिक और इतिहासकार कार्ल मार्क्स ने कहा था कि इतिहास खुद को दोहराता है, पहले एक त्रासदी की तरह, दूसरी बार एक मज़ाक की तरह।

“हेलो सोनिया कैसी हो?, क्या पुलिस ने उस व्यक्ति पर कोई कार्यवाही की?”, अंतिमा ने फोन पर सोनिया से पूछा।

सोनिया के बताने पर कि वो व्यक्ति किसी राजनेता का बेटा है और पुलिस उस पर कोइ कार्यवाही नहीं कर रही है तो वो समझ गयी कि सोनिया के लिए न्याय पाना इतना आसान नहीं होगा पर उसे अच्छा लगा जब सोनिया ने कहा कि वो चुप नहीं बैठेगी और न्याय के लिए अंत तक लड़ेगी ये सुनकर वो फिर से दो साल पहले की यादों में खो गयी।

संगीता कटारिया ने अंतिमा की रिपोर्टिंग दास के स्थान पर सीधे उमेश कटारिया को कर दी और साथ ही दास पर सख्त कार्यवाही का भरोसा दिलाते हुए अंतिमा का तबादला कंपनी की दूसरी शाखा में करने का प्रस्ताव दिया जो कि दिल्ली से ही सटे दूसरे शहर में थी। अंतिमा ने भी दूसरों कर्मचारियों का भविष्य खतरे में न डालने का फैसला लेकर उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

परन्तु करीब दो महीने काम करने के बाद अंतिमा को पता चल गया कि उसके साथ छल हुआ है क्योंकि ये एक सिर्फ नाम की शाखा थी और वहां पर कोई काम नहीं था। अंतिमा को खाली बैठना अच्छा नहीं लग रहा था इसलिए अंतिमा ने भी एम्प्लोयीमेंट बांड की चिंता किये बिना कंपनी से त्यागपत्र दे दिया परन्तु उसे ज्यादा दिन खाली नहीं बैठना पड़ा क्योंकि वो अपने ज्ञान और प्रतिभा के आधार पर एक बहुरास्ट्रीय पेशेवर कंपनी में सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी पाने में सफल हुई।

अंतिमा अपने ख्यालों से बाहर आई और उसने किसी को फ़ोन लगाया।

अगले दिन थाने में बहुत चहल पहल थी। वहां आज सोनिया, अंतिमा और अन्य लोगों के साथ साथ ऋतु भी मौजूद थी जोकि आज कल एक बड़े न्यूज़ चैनल में सहसंपादक के रूप में कार्यरत थी। ऋतु के साथ आये न्यूज़ चैनल के संवाददात और कैमरामैन ने थानेदार, सोनिया और अंतिमा का बयान लिया जिसका कि प्रसारण उसी दिन शाम को उनके टीवी चैनल पर किया गया और ये खबर अन्य न्यूज़ चैनलों पर भी दिखाई जाने लगी।

इस खबर के फैलने से पुलिस पर राजनैतिक विपक्ष और जनता का दवाब बढने लगा और अंत में पुलिस को बॉबी पाहुजा और उसके साथी को गिरफ्तार करना ही पड़ा। आगे की जांचों में पता चला कि वो दोनों अन्य लडकियों के अपहरण, बलात्कार और हत्या की घटनाओं में भी शामिल थे। उन दोनों लड़कों पर उन सभी घटनाओं के आरोप में भारतीय दंड संहिता के कई धाराओं के अंतर्गत मुकदमा चलाया गया।

अंतिमा खुश थी क्योंकि उसके द्वारा लिए गए फैसले की वजह से आज किसी पीड़िता को न्याय मिलने वाला था वो फैसला जो कि वो भावनाओं के षड़यंत्र में फंसकर वो खुद के लिए नहीं ले पायी थी।

आज सोनिया को एक नयी दोस्त मिली थी और दास को एक सबक। दास का स्तर अधिकारिक रूप से उसकी कंपनी में तो बढ़ गया था परन्तु आज वो खुद की ही नज़रों में बुरी तरह गिर चुका था।


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