शीर्षक- दिखावे में कैद जीवन
शीर्षक- दिखावे में कैद जीवन
आधुनिकता की चकाचौंध ने समाज का हाल क्या कर डाला
बढ़ते सभी गए सोच को पीछे कर डाला हाय क्या कर डाला
लज्जा करने वाले गवार कहलाने लगे, छोटे छोटे कपड़ों ने
हाय समाज का क्या कर डाला
दिल छोटे, भंडार घर खाली हुए भोजन में बदलाव भी कर डाला
पौष्टिकता कम हुई , बीमारी बढ़ने लगी, जंक फूड का चलन चला डाला
विश्व सैर हम कर लेते, चाँद की मिट्टी भी छू सकते
दिलों को छूने का हुनर भूले बैठे।
घर वालों को समय न दे सकते पड़ोसी की खबर नहीं
आधुनिकीकरण से सारी दुनिया मुठ्ठी में कर आये।
संस्कारों की कमी हुई, मानसिक रोगी का जन्म करवा डाला
आधुनिकता के दिखावे ने नैतिकता को बलि चढ़ा डाला
आओ मिल जुल कर एक संकल्प ले
गाँव की धूल को मस्तक पर ले
पूर्वजों के संस्कारों की धरोहर को नयी पीढ़ी की परवरिश
में विशेष रूप से जोड़ दे
अशुद्ध विचारो को ' झगड़े विवादों को,
मानसिक तनाव को, अपने मस्तिष्क से डिलीट करके
आत्मा को कलंकित होने से रोक ले
अपने जीवन को शांत चित से सरलता से जीने के लिए
तैयार करे
अपनी आने वाली पीढ़ी में शुभ संस्कारों का संचय करे
नव सोच, शुद्ध आचरण का व्यवहार करे।