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अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'

Tragedy

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अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'

Tragedy

शहरीकरण

शहरीकरण

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धरा का शृंगार करते वृक्ष

जिनका दोहन कर

स्वार्थी इंसान

बना रहा है

धरा को कुरूप,

जहाँ कभी होते थे

विशालकाय वृक्ष

फैली थी चारों ओर हरियाली

पक्षी करते थे कलरव

और श्रांत पथिक

छाया में विश्राम कर

मिटाते थे अपनी थकान

परंतु बढ़ते औद्योगीकरण ने

उजाड़ दिए वन 

और बन गये हैं बडे़-बडे़ भवन, फैक्ट्रियाँ

हो गया है नगरीकरण

अब वहाँ नहीं सुनाई देते 

पक्षियों के मधुर स्वर

अब सुनाई देती हैं

सड़कों पर दौड़ती वाहनों की आवाजें

अब भ्रमर नहीं मँडराते फूलों पर

अब मँडराता है

फैक्ट्रियों से निकलता धुआँ।



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