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शहर की गलियां

शहर की गलियां

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रिश्तों के होने का

एहसास अभी बाकी है,

शहरों की गलियों में

चाची, मौसी, बुआ, ताई,

सारे रिश्ते जीते हैं,


सबके सुख दुःख साझा हैं,

शहरों की इन गलियों में।

साथ साथ बड़े हुए

छुपन छुपाई खेली है,

सच्चे रिश्तों को सींचा है,

शहरों की इन गलियों ने।


अब,

विकसित होते महानगर

चौड़ी चौड़ी सड़कें हैं

भौतिकता की सजी दुकानें

और झूठे संबंध बनते हैं

अपने में सिमटती दुनिया में

अपनत्व कहीं खो जाता है।


संबंधों के धरातल पर

स्वार्थ का कोहरा छाया है

संबंधों की कम होती उष्णता

बढ़ती अविश्वास की आर्द्रता

कड़वाहट सिहरन देती है।


संबंध ही जीवन का आधार 

रिश्तों की मिठास रहे बरकरार

विश्वास ,प्रेम की किरणें 

संग अटल संबंध बनाते हैं।


कुछ हम सहे, कुछ तुम सहो 

संग संग बंध प्यार की डोर से 

जीवन में मधुरता लाते हैं।


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