सहचर मेरा
सहचर मेरा
आगे जाकर एक उम्र का वह दौर भी आएगा,
जब मेरी कांपती हथेली में इतना दम नहीं रह जाएगा!
मेरा एक सपना है और है एक उम्मीद कि ,
मेरे झुर्रियों वाले हाथ को मेरा सहचर जरूर थामे रहेगा!
बच्चे बड़े हो जाएंगे अपना कर्म धर्म निभाएंगे,
और हम दोनों उम्र के उस मुकाम पर बतियाएंगे!
फुर्सत के उन लम्हों में अपने जीवनसाथी का साथ होगा,
यूँ साथ रहते हुए तमाम जीवन का लेखा-जोखा होगा!
कभी बातें करते हुए कभी मुस्कुराऊंगी तो,
कभी बच्चों के बच्चे अपनी गोद में खिलाऊंगी!
आने वाले दिन की विभीषिका से मैं ऐसे नहीं डर जाऊंगी!
बल्कि उस डर को मैं अपनी उम्मीदों से पार कर जाऊंगी।
मेरा बुढ़ापा भी सबके लिए एक यादगार ही रह जाएगा!
क्योंकि कर्मयोगी के लिए तो क्या जवानी क्या बुढ़ापा,
वह हर उम्र में जांबाज और मेहनतकश ही कहलाएगा!
कर्म को प्राथमिकता देकर, जीवन संध्या में भी उजास फैलाऊंगी!
मेरी अदम्य इच्छा कि मैं सदा सुहागन इस दुनिया से जाना चाहूंगी !
अपने सहचर के हाथ से मांग भर के जहां को अलविदा कर जाऊंगी।

