शब्दों के पंख
शब्दों के पंख
शब्द बनकर उभरा है
मन का ज्वार,
दबे हुए विचारों को मिला है
एक नया संसार।
पुस्तकों के महल में
शब्दों की दुनिया अनदेखी,
जहाँ अंधकार से निकल रहा है
ज्ञान का प्रकाश।
शब्दों का वाहन लेकर
जाये उसे गगन पार,
अज्ञान की बेड़ियों पर
शब्द बन पड़े तलवार।
जो अधिकार कभी मिला नहीं,
आशा का कमल जो खिला नहीं।
दुनिया का अनदेखा रूप जो
पल-पल उसको चुभता है,
घर के चूल्हे चौके में
जिसका बचपन जलता है।
सिखाया था माँ ने जिसको
गृहस्थी का भार वहन,
सपने देखने की पीड़ा
जिसको करनी पड़ती थी सहन।
शब्दों के उज्जवल सितारों के बीच
वह चमके कुछ इस तरह,
जो चंद्र की शीतल किरणें
बिखराये दूसरे के जीवन में।
शब्दों में पिरोकर अपना भविष्य
माला बनेगी सपनों की,
जीवन के इस कर्मयुद्ध में
वह ढाल बनेगी अपनों की।