शब्द
शब्द
ज़रा तुकबन्दि कर लेती हूं दिल अपना बहलाने को
आला हैं दोस्त मेरे, तैयार हैं, गीत कहकर अपनाने को।
ज़हन की गलियों में शब्दों की भीड़ रहती ही है
चल पड़े हैं साथ कुछ, जज़्बात मेरे दिखलाने को।
अरमानों को ज्यों पंख लग गए , ऐसे भी कुछ लफ्ज़ मिले
जाएंगे किस किस के दिल में ये घरौदे बनाने को।
हरसिंगार के फूलों से झरते ,यादों का आंगन भर जाते
कुछ मैं चुन कर ले आती हूं अपना आज सजाने को।