शब्द ब्रह्म
शब्द ब्रह्म
अब जब निकल आई हूँ
उस खतरे दर्द पीड़ा और आशंका से
लिखना चाहती हूँ उन दिनों को
जो ड्रिप की हर बूंद के साथ
उतर चुके हैं नसों में।
आज भी रिस रहे हैं वे
पल पल
शब्द लेकिन इस रिसन में
बह चुके हैं।
सांसों के लिए लड़ते लोगों की
वह आवाज
जो चीख और बेबसी में लिथड़ कर
अजीब सी खांसी में तब्दील हो जाती थी
अब भी गूंजती है कानों में
लेकिन उस आवाज को लिखने के लिए
ककहरा कम है।
तमाम डाक्टरों नर्सों के साथ
तमाम दवाओं आक्सीजन के बीच
हर चेहरे पर छाया वह खौफ
आँखों में जलती बुझती वह आस
किन शब्दों में लिखूं नहीं जानती।
जानती हूँ तो बस यही
कि दुआओं में कहे गये शब्द
प्रार्थनाओं में दी गई आवाजें ही
वे शब्द हैं जो सबसे ताकतवर हैं
जिन्हें लिखे बिना भी पहुंचाया जा सकता है
असीम ब्रम्हांड तक
जिन्हें सुने बिना भी समझा जा सकता है
वही शक्ति है जो बचा सकती है
किसी के प्राण।