शब जो उनकी याद न आई
शब जो उनकी याद न आई
शब जो उनकी याद न आई हमें बेवफ़ा कहलाये गये हम
याद करने की कितनी फ़ुरसत है ये उन्हें क्या बताये हम
कहा जब हद से बढ़कर हसीन लगती हो तो
बोले किसी और तरह से प्यार जताए हम
जब कहा आपसे मिलने की बहुत हसरत है
तो फरमाया कुछ और दिन उनके बिन बिताये हम
ये चेहरे पे इतनी खामोशी और उदासी क्यों
अब तो चाह है उस तस्वीर को सीने से लगाये हम
तुम्हारा साथ ना हो तो ये सुबह भी है अंधेरी
तुम बिन राहो में कही भटक न जाये हम
ख़्यालों में उनकी काटी है कितनी रातें
ना जाने कितनी दफ़ा जगाये गये हम
फ़िर सोचता है अभिषेक ग़ालिब बन जाये तुम्हारे लिए
जी चाहने लगता है तुम पर लिखे कुछ ग़ज़लें हम।

