सहारा (गीत)
सहारा (गीत)
हो ग़र सहारे की आशा तो भाव दह दो
'तू नहीं चाहिए' अब सहारों से कह दो..
समय चक्र ने खूब ही खेल खेला
मुश्किलों का लगाता रहा है मेला
लोग बदले हुए तेवरों मे मिले हैं
नामी रिश्तों की बेरूखी को झेला
अपने पैरों पर अब हम खड़े हो गए हैं,
अब न कोई स्वार्थीगण हमें सतह दो..
हमने तन्हाई में डूबके दिन गुजारे
हाँ जरूरत पर छूटे थे सारे सहारे
भंवर से अकेले निकाली स्व नैया
लगे हैं अकेले ही लड़कर किनारे
आस देकर सब रिश्ते तोड़ें विश्वास है
झूठे-झूठे दिलासे अब सारे ही तह दो..
नहीं कोई अपना जहां मे है जानों
नेकी करके मिलेगी बदी ही मानों
मतलबी है यहाँ हरेक शख्सियत
निज दम पर चलोगे बस ये ठानों
साहस और आत्मविश्वास जगाकर
पर-आस-विश्वास की दीवारें ढह दो..
