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RAJENDRA SINGH PARMAR

Abstract

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RAJENDRA SINGH PARMAR

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शाम

शाम

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सुनो यार मेरी एक चीज़ देखी है क्या 

कुछ दिनों से मिल नही रही है,


सुबह जल्दी ऑफिस जाता हूं

ओर रात को देर से आता हूं 


ध्यान ही नहीं देता हूं अब उस पर

खेलता नहीं बचपन के जैसे उसके साथ 


बांटता नहीं अब उसे यारों के साथ

रख कर भूल गया हुआ कहीं उसे

 

या फिर ख्वाहिशों की भीड़ में कही खो गयी है 

यारों ढूंढो उसे..मेरी "शाम" कहीं खो गयी है।


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