यार वहीं मिलेंगे
यार वहीं मिलेंगे
शोर क्यो हैं इतना,
ओर तुम इतना खामोश क्यो हों।
खबर हैं तुम को सबकी,
फिर तुम इतना मदहोश क्यो हो।
खुद ही कि लगाई आग में
जो तुम जल रहे हों,
जल कर भी अकेले
ही चल रहे हो।
घमंड है या पछतावे के आंसू
पता नहीं पर इन्हें पोंछने की जरूरत हैं,
बिखर गए हो पर इतना नहीं
थोड़ा समझने की जरूरत है।
घमंड के बोझ उतारो ओर
आओ उस गली में,
ठिकाना आज भी वही हैं यारों का
ओर वो वही मिलेंगे।
वो बेवजह है बेकार है
करते हुए हँसी ठिठोली वही मिलेंगे,
रोना मत वो मज़ाक बहुत उड़ाते है
बचपन के झगड़े मैदानों वाले वही मिलेंगे।
लिफाफे वाली राखी
हर बार ये कहती है
खुशियों के त्यौहार
घरों से हैं और वो वही मिलेंगे।
