सदकर्म
सदकर्म
सदकर्मों की गठरी भारी - थी जो नर तन पाया है
सदकर्मों का लेखा जोखा, जो भी यहाँ पर पाया है
जो भी यहाँ पर पाया है ……………
भरी गठरी से रे! मानव तूने क्या क्या यहाँ गँवाया हैं
हुई है ख़ाली गठरी या कुछ जोड़ के माल बढ़ाया हैं
जोड़ के माल बढ़ाया हैं …………
झूठी मोह और माया, झूठा ये संसार हैं, सदकर्मों की
गठरी से, होता भव भव पार हैं, होता भव भव पार हैं
मोह माया में फँसा हैं बन्दे, या फिर धर्म को जोड़ रहा
विनय, विवेक और शुद्ध भावों से मानव तन को संवारा हैं
मानव तन को संवारा हैं …………
करके पुण्य की कमाई गठरी भरकर जाना हैं, अमूल्य ये
तन पाकर, यूँ व्यर्थ नहीं गँवाना है यूँ व्यर्थ नहीं गँवाना हैं
करके सेवा, दान और पुण्य, सत्कर्मों को चमकाना हैं
लगी धूल जो विषय वासना की, उसकी परत हटाना हैं २
सुगन्ध फैले सत्कर्मों की, हर जन को जैनी बनाना हैं
जन जन जैनी बनाना हैं …………
सदकर्मों की गठरी को भर भर वापस भरना हैं भर भर वापस
भरना हैं, नहीं गँवाना इस गठरी को, जोड़ जोड़ ले जाना हैं
जोड़ जोड़ ले जाना हैं ……………………………………..
