सड़क पर मजदूर
सड़क पर मजदूर
साहब ये मजदूर हैं
जो आज पूरे मजबूर हैं
सैकड़ों मील और दो पैर
और करें भी क्या?
गरीबी में बेचारे चूर हैं।
घर, सड़क, गाड़ियाँ ये बनाते
दो वक़्त की रोटी भर पैसा कमाते
इनके दुख दर्द को अनदेखा करके
शर्म नही आती सरकार को अर्थव्यवस्था बचाते।
भूखे प्यासे धूप में चलना
सड़कों पर इनके पैरों का जलना
तुम पंखें के नीचे बैठ कर
नही समझ पाओगे गरीबी में पलना।
लोग इन्हें बेवक़ूफ कह रहे हैं
बिना वजह ये दर्द सह रहे हैं
ये सब कहने से पहले ज़रा सोचो
इनकी आँखों से आँसू क्यों बह रहे हैं?