दरिया और साहिल
दरिया और साहिल
दरिया के साहिल पर बैठ के
मैने ज़िन्दगी का सबक सीखा
आज नही तो कल ओझल होगा
तेरी ज़िन्दगी से मीठा भी और तीखा।
दुख के रेतीले भरे किनारे
आज नही तो कल लहरों के
नीचे समा जाएंगे
चंचल लहरे तेरी खुशियों के
फिर कही दूर तलक
रेतों के आगोश से दूर हो जाएंगे।
क्यों तू ये मचलती लहरों को देख
यूँ घमंड करता है
क्यों तू ये सूखी पड़ी रेतीली ज़मीं
देख यूँ आहें भरता है।
कहा ठिकाना है कोई इन लहरों का साहिल पर
कब तक सूखे रहेंगे ये दरिया के किनारे
लुत्फ़ दोनों का है ज़िन्दगी में, तू इसे क़ामिल कर
दरिया तो बहतें है इन दोनों के ही सहारे।
