इंसानियत
इंसानियत
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ये जो सन्नाटा सा पसरा है शहरों में
इनकी क्या तुलना समंदर की लहरों से
इस सन्नाटे में भी नफरतों का शोर
हमें लेके जा रहा किस तरफ किस ओर।
लहरों के शोर में भी एक सुकून सा है
शहरों में पता नहीं क्यों एक जुनून सा है
कितनी ईमानदारी से बहते हैं ये साहिल पे
और लोग बर्ताव किये जा रहें हैं जाहिल से।
इतनी नफ़रत से तो न होने वाली किसी की भलाई
जो काम न आ सके किसी जरूरतमंद के
बेकार है ऐसी हर एक कमाई।
अगर इंसानियत की होती ज़रा सी पढ़ाई
तो रास न आती हैवानियत की ऐसी लड़ाई।
इंसान पैसे से नहीं लोगों की
मोहब्बत की कमी से ग़रीब होता है
एक दूसरे के दर्द समझ लेने से ही इंसान
इंसान के करीब होता है।