ख़ुदा और दुनिया
ख़ुदा और दुनिया


एक वक़्त की बात सुनो सब
हुआ बोर ख़ुदा भी जब तब
खाली बैठे उसने सोचा
आओ आज करें कुछ लोचा।
बैठे बैठे नक़्शी दुनिया
बना दिया इंसान को
किया झमेला बुद्धि देकर
आदम की संतान को।
पहले पहले कुछ लोगों से
दुनिया बहुत निराली थी
क़ायनात के उस मंज़र से
दुनिया में ख़ुशहाली थी।
लोग बढ़े और भीड़ बढ़ी जब
धर्म बने और ज़ात बनी तब
इंसानों का करा कराया
हिन्दू मुस्लिम हुआ पराया।
सहे ज़ुल्म इस दुनिया में
दुनिया के हक़दारों ने
आगे रहकर चुप्पी साधी
यहाँ सियासतगारों ने।
ऊपर बैठा वही ख़ुदा था
जिसने तुमको हमको बनाया
देख यहाँ की हालत ऐसी
जिसमें था बस अपना पराया,
छोड़ दिया उसने हम सबको
अपनी ही इस हालत पे
कहा बचा लो इंसानों को
प्यार मोहब्बत सा'दत से।
ये नही खुदा की है मर्ज़ी
हम लड़ते और झगड़ते हैं
वो मज़हब सारे हैं फ़र्ज़ी
जो नफ़रत बस भड़कतें हैं।
ये वक़्त बुरा है हम सबका
ना जीता ना कोई हारा है
जीना मरना देन ख़ुदा की
खेल रचाया सारा है।
मक़सद ख़ुदा का है ऐ बंदे
प्यार मोहब्बत आदत पाल
ये खेल बुराई के हैं गंदे
लड़ना और झगड़ना टाल।