सदा वसंत
सदा वसंत


तन भर रंगों के बहार लिए,
झूम उठी है ऋतु राज प्रिये।
निहार के वसंत का सुखद आगमन,
हुए उन्मादित अवनि के तन-मन।
तरु-लता की आनंद की होली,
मधुकर- पुष्प की आँख मिचोली।
उन्मत्त हुआ भृंग, मधु-पान किए,
खिला पुष्प फलित होने की आस लिए।
प्यार ही चंदन, प्यार ही बंधन,
प्यार से प्रकृति में है नित स्पंदन।
प्यार तो है सदा बहुत ही न्यारा,
प्यार में डूबा है हर पल जग सारा।
प्यार ही अनुबंध की नितांत बेला,
प्यार से ही बनी है सृष्टि की लीला।
है प्यार से नव-नवीन हुआ जग जीवन,
सदा वसंत है जीव राशि के तन –मन।