सबके अपने अपने गुलाब हैं
सबके अपने अपने गुलाब हैं
किसी की मुस्कराहट का ज़रिया
किसी के दर्द की कहानी
वजूदे किस्से ये मेरे जनाब हैं
सबके अपने अपने गुलाब हैं।
नयी खिली कोई कली
या वही दबी पन्नो में अनकही
साथ मेरे यादें बेहिसाब हैं
सबके अपने अपने गुलाब हैं।
कहीं हूं धोखे का खेल
कहीं दिलो का मेल
मिले मोहबत में जो खिताब हैं
सबके अपने अपने गुलाब हैं।
कोई शर्मा के ले लेगा
कोई इतरा के फेंकेगा
मेरी कलियों में सजाते ख्वाब हैं
सबके अपने अपने गुलाब हैं।
मुझे पलकों सा तो कभी होठों सा कहते हैं
देख मुझे अरमानो में किसी और के रहते हैं
शर्मो हया से बने फूलों के हिजाब हैं
सबके अपने अपने गुलाब हैं।
अफ्साना हो गया अब कोई फसाना होगा
सूख कर मुझे ज़मीनदोज़ हो जाना होगा
मेरे हिस्से में दर्दो गम बेहिसाब हैं
सखी सबके अपने अपने गुलाब हैं ।

